कल ख़बर आई कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी CAG की एक रिपोर्ट में आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) करीब 7.5 लाख लाभार्थी एक ही मोबाइल नंबर पर रजिस्टर्ड हैं. इस मोबाइल नंबर में सभी 10 नंबर में 9 का अंक (9999999999) है. जिस मोबाइल नंबर से ये करीब 7.5 लाख लोगों का रजिस्ट्रेशन किया गया था, वो नंबर भी गलत था, यानी उस नंबर का कोई भी सिम कार्ड नहीं है. ऐसे ही करीब 1 लाख 39 हजार 300 लोग एक दूसरे नंबर 8888888888 से जुड़े हुए हैं, वहीं 96,046 अन्य लोग 90000000 नंबर से जुड़े हुए हैं. इसके अलावा ऐसे ही करीब 20 नंबर भी सामने आए हैं, जिनसे 10 हजार से लेकर 50 हजार लाभार्थी जुड़े हुए हैं.
लेकिन ये कोई घोटाला नहीं है सम्भव है ये डिफॉल्ट नंबर हों यदि आपको घोटाला ही देखना है तो आपको मध्यप्रदेश से आई खबरें देखना चाहिए मध्य प्रदेश में आयुष्मान भारत योजना से संबद्ध 120 निजी अस्पतालों ने दो सौ करोड़ रुपयों का घोटाला किया है। इनमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर सहित प्रदेश के ख्यातिप्राप्त निजी अस्पताल भी शामिल हैं। भोपाल और जबलपुर के कुछ अस्पतालों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई है।
मध्यप्रदेश में ये हाल है कि बिना डॉक्टर और पलंग वाले एक कमरे के अस्पतालों को इलाज की मान्यता दी गई और उसे एक से पांच करोड़ रुपये तक जारी किए गए। घोटाले में शामिल अस्पतालों ने खुद के कर्मचारियों के नाम आयुष्मान कार्ड बनवा दिए गए थे और उन्हें मरीज बनाकर रकम निकाल ली गई।
यदि किसी मरीज का बिल 50 हजार का बना तो उसे बढ़ाकर दो लाख रुपये की राशि सरकार से वसूल ली गई
अस्पताल इस रकम की लूट के लिए इतने व्यग्र थे कि आयुष्मान कार्डधारियों को अस्पताल लाने के लिए जगह-जगह एजेंट नियुक्त किए गए थे। ये एजेंट को आफर देते हैं कि वे आयुष्मान योजना के तहत पांच मरीजों को अस्पताल में भर्ती करवाएं और एक्टिवा ले जाएं। कुछ अस्पतालों ने इन्हें जनसंपर्क अधिकारी का पदनाम दे दिया था। बिलिंग की राशि में बढ़ोतरी का खेल जांच के नाम पर किया जाता था। महंगी-महंगी जांच के नाम पर बिल बना लिए जाते थे। जबलपुर में तो मुन्ना भाई एमबीबीएस फ़िल्म की तरह चार हजार मरीजों को होटल में भर्ती करके फर्जी इलाज किया और सरकारी खजाने में जमकर डाका डाला.
इस फर्जीवाड़े में शामिल अस्पताल विशेषज्ञ डाक्टरों के नाम पर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में शिविर भी लगाते हैं। शिविर में विशेषज्ञ डाक्टर नहीं बल्कि अस्पताल के ही कर्मचारी मरीजों की जांच करते हैं।
आयुष्मान कार्डधारी मरीजों को चिह्नित करने के बाद उनसे कहा जाता है कि उन्हें उपचार के लिए शहर आकर अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा। उपचार पूरी तरह से निश्शुल्क रहेगा लेकिन कुछ औपचारिकताएं करनी होंगी। निश्शुल्क उपचार के लालच में मरीज शहर आकर अस्पताल में भर्ती तो हो जाते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता होता कि उन्हें वास्तव में क्या बीमारी है और अस्पताल उनके उपचार के नाम पर शासन से कितना पैसा वसूल कर रहे हैं? इलाज के नाम पर मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल की आइसीयू में भर्ती दिखाया जाता है, लेकिन वास्तव में उन्हें इसकी जरूरत होती नहीं।
जब यह घोटाला सामने आया तो आयुष्मान भारत योजनांतर्गत प्रदेश के 627 स्वीकृत अस्पतालों में से अनियमितता के कारण 422 अस्पतालों को निलम्बित कर दिया गया
लेकिन आगे जांच ही नहीं की गईं इसकी जांच कर रहे लोकायुक्त डीजी कैलाश मकवाना को शिवराज सरकार ने महज छह महीने में ही हटा दिया, जैसे ही दबंग और ईमानदार ऑफिसर मकवाना आयुष्मान भारत योजना से फाइल भेजी, वैसे ही सरकार ने उनका ट्रांसफर आर्डर थमा दिया
ये है असलियत आयुष्मान की