लाखों कर्मचारियो की पुरानी पेंशन की मांग को अनदेखा करने से पहले जरा “माननीयो” की पेंशन पर तो नजर डाल लीजिए 

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दिल्ली के रामलीला मैदान में पुरानी पेंशन की मांग को लेकर लाखों सरकारी कर्मचारियो ने प्रदर्शन किया ये कर्मचारी देश भर से  जुटे थे दरअसल भारत में सरकारी कर्मचारियों की पेंशन 2004 से ही बंद कर दी गई थी, मोदी सरकार ने सेना के लिए  ‘अग्निपथ’ योजना  लाकर सैनिकों की भी पेंशन एक तरह से बंद कर दी है इस योजना के माध्यम से भर्ती ‘अग्निवीरों’ को 4 साल बाद ही सेवामुक्त कर दिया जाएगा। अब ये पेंशन के हकदार नहीं है
ऐसे मे सांसद और विधायकों की पेंशन पर भी सवाल उठने लगे हैं जिस देश के लोग आजीवन अपनी सेवाएं देने के बाद भी अपना बुढ़ापा सुरक्षित करने के लिए सरकारी पेंशन के हकदार नहीं हैं वहां के सांसद-विधायक एक बार चुनने के बाद आजीवन पेंशन का सुख भोगते हैं.
जब माननीयों के खुद के हित की बात आती है तो वह एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपने अधिकार लेते हैं
सबसे बड़ी बात तो यह है कि अग्निवीर यदि चार साल तक नौकरी करे तो भी उसे पेंशन नही दी जाएगी लेकिन यदि सांसद एक दिन भी सांसद बन जाए तो आजीवन उसे पेंशन भत्ता मिलता रहेग अगर कोई भी एक दिन के लिए भी सांसद या विधायक बन जाता है तो उसे आजीवन उसे 25 हजार रु प्रतिमाह पेंशन मिलती है. सिर्फ पेंशन ही नहीं, बल्कि और भी कई सारी सुविधाएं मिलतीं हैं.
इतना ही नहीं, अगर कोई सांसद के बाद विधायक बन जाता है तो उसे सांसद की पेंशन के साथ-साथ विधायक की सैलरी भी मिलेगी. और विधायक पद से हटने के बाद सांसद और विधायक, दोनों की पेंशन मिलती है.
इसके अलावा, पूर्व सांसद अपने किसी साथी के साथ किसी भी ट्रेन में सेकंड एसी में फ्री यात्रा कर सकते हैं. अगर वो अकेले यात्रा करते हैं तो फर्स्ट एसी में भी यात्रा कर सकते हैं
अगर कोई नेता पूर्व सासंद की पेंशन ले रहा है और फिर से मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद के वेतन के साथ ही पेंशन मिलती है. इसके अलावा जैसे मान लीजिए कोई नेताजी पांच बार सासंद बनते हैं तो उनकी पेंशन में भी उसी हिसाब से बढ़ोतरी हो जाएगी. यानी जितने ज्यादा दिन सासंद रहेगा, उतनी ही ज्यादा पेंशन मिलेगी.
अगर कोई व्यक्ति राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों का सदस्य रह चुका है तो उसे दोनों सदनों के पूर्व सांसद की पेंशन मिलती है.
लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की सैलरी और पेंशन के लिए 1954 से कानून है. समय-समय में इसमें संशोधन होते रहते हैं. लोकसभा का एक कार्यकाल यानी 5 साल पूरा करने पर 25 हजार रुपये पेंशन के हकदार हो जाते हैं. इसी तरह अगर राज्यसभा का एक कार्यकाल यानी 6 साल पूरा कर लिया तो हर महीने 27 हजार रुपये की पेंशन मिलती है.  राज्यसभा सांसद का कार्यकाल 6 साल रहता है तो उन्हें हर महीने 27 हजार रुपये पेंशन मिलती है. अगर कोई दो बार यानी 12 साल तक राज्यसभा सांसद रहता है तो उसे 39 हजार रुपये पेंशन हर महीने मिलती है.
संसद सदस्य वेतन तथा भत्ता कानून के तहत किसी पूर्व दिवंगत सदस्य के पति/पत्नी और आश्रित भी दिवंगत सदस्य की मृत्यु के समय उसे मिलने वाली पेंशन का 50 प्रतिशत पाने के हकदार है और यह पेंशन पति/पत्नी को शेष जीवन तक मिलती है
एक आरटीआई के अनुसार कुल मिलाकर लोकसभा और राज्यसभा के 4,796 पूर्व सांसद पेंशन ले रहे हैं. इनकी पेंशन पर हर साल 70 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. इनके अलावा 300 पूर्व सांसद ऐसे हैं, जिनका निधन हो चुका है और उनके परिवार वालों को पेंशन मिल रही है.आर्थिक रूप से मजबूत कई सारे पूर्व सांसद ऐसे हैं, जो पेंशन का लाभ ले रहे हैं. 
सांसद-विधायकों की पेंशन का विरोध इसलिए भी किया जाना चाहिए क्योंकि इनके पास पहले से ही काफी संपत्ति होती है। हालांकि इनमें भी कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन ये लोग अपनी पेंशन छोड़ने की बात नहीं करते।
ऐसे सांसद जो इनकम टैक्स के 30% स्लैब में आते हैं, उन्हें भी पेंशन का लाभ  दिया जा रहा है इनमें राहुल बजाज, संजय डालमिया, सुभाष चंद्रा और साउथ फिल्मों के सुपरस्टार चिरंजीवी जैसे अमीर शामिल हैं.
अब जरा विधायको को भी देख लेते है
आपको जानकर भारी आश्चर्य होगा कि  भारत के कई राज्य तो ऐसे हैं, जहां के पूर्व विधायकों की पेंशन सांसदों से ज्यादा है। पंजाब के विधायकों को प्रतिमाह 75000 रुपए पेंशन मिलती है, जबकि जो विधायक कई बार जीते हैं उनकी पेंशन 3 लाख प्रतिमाह से भी ज्यादा पहुंच रही थी।आम आदमी पार्टी सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान ऐलान किया कि अब से विधायकों को एक ही कार्यकाल की पेंशन दी जाएगी।
विधायकों की पेंशन को लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रावधान हैं। कुछ राज्यों में कार्यकाल की समयसीमा भी तय की गई है। भारत के 4 राज्य ऐसे भी हैं, जहां ये सीमा तय की गई है। उदाहरण के लिए ओडिशा में एक साल, सिक्किम और त्रिपुरा में 5 साल और असम में यह सीमा 4 साल है। ऐसा एक फार्मूला सांसदों के लिए भी लाया गया था, लेकिन 2004 में इसे हटा लिया गया था
विधायकों को रिटायरमेंट के बाद पहले 5 सालों में 25 हजार और उसके उसके बाद प्रतिवर्ष 2 हजार रुपए अलग से मिलते हैं
कई राज्यों में विधायक 8-8 बार की पेंशन ले रहे हैं। राजस्थान की ही बात करें तो एक बार के पूर्व विधायक को 35 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती है। अगर वह दूसरी बार विधायक बनता है तो पेंशन राशि में 8000 रुपए की वृद्धि हो जाती है। इसके बाद नेता जितनी बार भी विधायक बनेगा, उतनी ही बार 8-8 हजार रुपए की पेंशन राशि बढ़ जाएगी।
आरटीआई में मिली सूचना के मुताबिक हरियाणा के कुल 275 पूर्व विधायकों की पेंशन व 128 पूर्व विधायकों की फैमिली पेंशन पर पेंशन पर कुल 29.51 करोड़ रुपए सालाना खर्च किए जा रहे हैं।महाराष्ट्र में विधायकों की पेंशन पर सालाना 72 करोड़ खर्च होते हैं।
केरल में तो कमाल की व्यवस्था है वहा यदि कोई मंत्री अपने कार्यालय में दो साल के लिए स्टाफ की नियुक्ति करता है और इसके बाद उसकी सेवा समाप्त होने पर उस स्टाफ को आजीवन पेंशन मिलती है
देश में जहां वृद्धावस्था पेंशन सिर्फ दो हजार रुपए है तो भविष्य निधि योजना के तहत पत्रकारों को मिलने वाली पेंशन की न्यूनतम राशि सिर्फ नौ सौ रुपए ही मासिक है लेकिन पूर्व सांसदों और विधायकों को तमाम सुविधाओं के साथ हर महीने लाखों रुपए पेंशन के रूप में मिलते हैं. पूर्व सांसद या विधायक का निधन होने की स्थिति में यह लाभ उनके जीवन साथी/आश्रित को जीवन भर मिलता है.
एक अनुमान के मुताबिक देश के सभी पूर्व सांसदों और विधायकों को पेंशन देने में प्रतिवर्ष 500 करोड़ से ज्यादा धन खर्च करना पड़ता है। जनप्रतिनिधियों की पेंशन पर रोक लगाने को लेकर याचिकाएं मध्य प्रदेश और इलाहबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में दायर की जा चुकी हैं, लेकिन सभी को खारिज कर दिया गया।
ऐसे हैं हमारे माननीय………

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