सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में इस्तेमाल होने वाले सोर्स कोड के ऑडिट की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जनहित याचिका में ईवीएम के ‘सोर्स कोड’ के स्वतंत्र ऑडिट की मांग की गई थी और प्रार्थना की गई थी कि ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाए।
‘सोर्स कोड’ कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का उपयोग करने वाले प्रोग्रामर के निर्देशों और कथनों का एक ‘सेट’ होता है। याचिकाकर्ता सुनील अह्या ने कहा कि ईवीएम ‘सोर्स कोड’ से ही चलता है और यह याचिका लोकतंत्र को बरकरार रखने के संबंध में है।
याचिकाकर्ता ने पहले 2019 के आम चुनावों से पहले इसी तरह की याचिका दायर की थी। उस समय, यह माना गया था कि आसन्न चुनावों के कारण याचिका में शामिल होना संभव नहीं था।फिर याचिकाकर्ता ने 2020 में भी इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्हें ईसीआई के समक्ष प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी गई थी। याचिकाकर्ता ने पीठ को बताया कि ईसीआई ने उनके अभ्यावेदन का जवाब नहीं दिया, इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुनवाई के दौरान बेंच ने याचिकाकर्ता सुनील अह्या से पूछा कि क्या ऐसी कोई सामग्री है जो ईवीएम मशीनों पर संदेह पैदा करती है।अह्या ने जवाब दिया कि ईवीएम के पीछे स्रोत कोड का दिमाग है और नागरिक एक ऐसी प्रणाली के माध्यम से मतदान कर रहे हैं जिसका ऑडिट नहीं किया जाता है।उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में, ऐसी ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं, लेकिन भारत में ईवीएम स्रोत कोड का स्वतंत्र रूप से ऑडिट नहीं किया जा रहा है या हैश फ़ंक्शन हस्ताक्षर नहीं हैं।
इस पर अदालत ने टिप्पणी की, “यह सार्वजनिक डोमेन में नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे खतरा हो सकता है और इसका दुरुपयोग हो सकता है।” अपने आदेश में कहा, “वर्तमान में, याचिकाकर्ता ने यह इंगित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई कार्रवाई योग्य सामग्री नहीं रखी है कि चुनाव आयोग ने संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन किया है।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि “जिस तरीके से सोर्स कोड का ऑडिट किया जाना चाहिए या ऑडिट को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाना चाहिए, वह चुनाव की अखंडता से संबंधित संवेदनशील मुद्दों पर आधारित है, जो चुनाव आयोग के पर्यवेक्षण में आयोजित किए जाते हैं।” याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिया गया, “ऐसे नीतिगत मुद्दे पर, हम याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए निर्देश जारी करने के इच्छुक नहीं हैं।”
दरअसल जो मशीन भारत में evm के नाम से जानी जाती है उसे ही अंतर्राष्ट्रीय तौर पर (DRE) यानी डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन कहा जाता है ,जो की वोट को डायरेक्ट इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी में सेव कर लेती है इसी से मिलती जुलती सब मशीन बहुत देशो में बैन की जा चुकी है
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन सिर्फ और सिर्फ तब ही सुरक्षित है जब तक इसमें वास्तविक कोड प्रणाली इस्तेमाल की जाती है | लेकिन चौकाने वाला तथ्य ये है भारत की EVM मशीन निर्माता कंपनी BEL एंड ECIL ने ये टॉप सीक्रेट (EVM मशीन के सॉफ्टवेर कोड ) को दो विदेशी कंपनियो के साथ साझा किया गया है विदेशी कंपनियों को दिया सॉफ्टवेयर भी जाहिरा तौर पर सुरक्षा कारणों से, निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध नहीं है.
ईवीएम माइक्रो कंट्रोलर के निर्माताओं में से एक माइक्रोचिप इंक (यूएसए) है माइक्रोचिप इंक न केवल भारतीय ईवीएम में प्रयुक्त माइक्रोचिप की आपूर्ति करता है, बल्कि माइक्रोचिप पर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम राईट भी करता है. उसके बाद इस तरह से उसकी सीलिंग की जाती है कि न तो चुनाव आयोग, न भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और न ही भारतीय कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड उसकी प्रोग्रामिंग को पढ़ सके
ईवीएम का सोर्स कोड परम गोपनीय (टॉप सीक्रेट) रखा गया है. यह इतना गोपनीय है कि चुनाव आयोग के पास भी उसकी नक़ल नहीं है. न कोई इसकी कोई ऑडिट रिपोर्ट है इस सोर्स कोड का महत्व जगज़ाहिर है,
प्रोग्राम कोड को मशीन कोड में बदलने के बाद ही विदेशी चिप निर्माता को दिया जाता है, क्योंकि हमारे पास देश में सेमी-कंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने की क्षमता नहीं है. यहीं पर चुनाव आयोग एक भ्रामक घोषणा करता है और झूठे आश्वासन देता है, क्योंकि चुनाव आयोग जो बात नहीं कह रहा है वो यह है कि जिस प्रोग्राम कोड को बाइनरी लैंग्वेज में राईट किया गया है, उसे माइक्रोचिप विनिर्माण कम्पनियां पढ़ भी सकती हैं और उनके साथ छेड़छाड़ भी कर सकती हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो ये विदेशी कम्पनियां किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के हितों के अनुरूप प्रोग्राम के साथ छेड़छाड़ कर सकती हैं.
प्रोग्राम कोड से छेड़छाड़ की संभावनाएं
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मशीन बंद किए जाने के 24 घंटे बाद किसी उम्मीदवार के वोट का कुछ प्रतिशत हिस्सा किसी अन्य राजनीतिक दल के पक्ष में हस्तांतरित करना.
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मतदान के बाद मशीन को फिर से चालू कर किसी उम्मीदवारों के मतों का एक प्रतिशत किसी अन्य राजनितिक दल के पक्ष में हस्तांतरित करना
क्योंकि दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियाँ नहीं चाहती कोई evm पर बात करें… और गेंद कोर्ट के पाले में डालकर मुद्दे से मुक्ति चाहती है