सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है कि राहुल गांधी को अधिकतम सजा क्यों दी गई?
राहुल गांधी को ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। कोर्ट ने शुक्रवार को एक अंतरिम आदेश में सजा पर फिलहाल रोक लगा दी। इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने ‘मोदी उपनाम’ टिप्पणी पर मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद राहुल लोकसभा सदस्यता बहाल हो सकती है।
आज के फैसले की ख़ास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट जानना चाहता है कि राहुल गांधी को अधिकतम सजा क्यों दी गई?
आप किसी भी समझदार व्यक्ति से बात कर के देख लीजिए वो यही बोलेगा कि राहुल गांधी को गलत फंसाया गया था मानहानि के केस में दो साल की जेल की सजा आज तक किसी को देते न देखा गया न सुना गया और वो भी एक साधारण सी बात पर
एक बात यहां समझना जरूरी है कि आपराधिक मानहानि में 2 साल की सजा अधिकतम सजा होती है और दो साल की सजा के बाद ही आपकी संसद सदस्यता खत्म की जा सकती है
’लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (3) के अनुसार, जिस क्षण किसी संसद सदस्य को किसी भी अपराध में दोषी करार दिया जाता है, और कम से कम दो साल कैद की सज़ा सुनाई जाती है, वह संसद सदस्य रहने के लिए अयोग्य हो जाता है और यहां अधिकतम ही सजा राहुल गांधी को सुनाई गई है और अदालत ने उन्हें यह सजा देकर बताया कि वह किसके निर्देशों पर चल रही थीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट का फैसला काफी दिलचस्प है। राहुल गांधी की सजा कम भी हो सकती थी। वह जानना चाहता है कि अधिकतम सजा क्यों दी गई? कोर्ट का मानना है कि अगर जज ने एक साल 11 महीने की सजा दी होती तो राहुल गांधी अयोग्य नहीं ठहराए जाते। यदि सजा एक दिन भी कम होती तो अयोग्यता से संबंधित प्रावधान लागू नहीं होता।
ट्रायल जज से कम से कम यह अपेक्षा की जाती है कि वह गैर संज्ञेय अपराध के लिए अधिकतम सजा देने के कारण बताएं। हालांकि, अपीलीय अदालत और हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करने में काफी पन्ने खर्च किए हैं, लेकिन इन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे मामलों में सार्वजनिक व्यक्ति से कुछ हद तक सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश के प्रभाव व्यापक हैं। इससे न केवल राहुल गांधी का सार्वजनिक जीवन में बने रहने का अधिकार प्रभावित हुआ, बल्कि उन्हें चुनने वाले मतदाताओं का अधिकार भी प्रभावित हुआ। इन बातों को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से यह कि ट्रायल जज द्वारा अधिकतम सजा के लिए कोई कारण नहीं दिया गया है
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