यूनिफॉर्म सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता को लागू करने में दिक्कत क्या है ? जिस बात का प्रावधान यदि संविधान में ही कर दिया गया था उसे आज लागू किया जा रहा है तो आख़िर किसी को क्या समस्या हो सकती है
हम सब जानते हैं कि अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए राज्य नीति के एक निर्देशक सिद्धांत के रूप में प्रावधान किया गया है जिसमें कहा गया है कि “राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में एक समान नागरिक संहिता के लिए नागरिकों को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।”
यह तो बड़ी अच्छी बात है कि मोदी सरकार ने इस भागीरथी कारज का बीड़ा अपने सर पर उठा लिया है इसका तो सभी को स्वागत करना चाहिए
तो आख़िर दिक्कत कहा है जिस प्रगतिशीलता की बात कर के मोदी सरकार लोगों को कनविंस कर रही है वो प्रगतिशीलता उस वक्त कहा गई थीं जब जवाहर लाल नेहरू 1951 मे हिन्दू कोड बिल लाए थे
सच्चाई यह है कि अगर आज लोगो को पचास के दशक का आरएसएस का असली रूप दिखला दिया जाए तो उनकी आँखें फटी की फटी रह जाएगी……… कल मोदी जी ने बड़ी शान के साथ संसद में एक बार कहा था कि कि शादी की उम्र आदि जैसे कानूनों को बनाने के लिए किसी ने कानून बनाने की मांग नहीं की थी, लेकिन प्रगतिशील समाज के लिए आवश्यक होने के कारण कानून बनाया गया।
क्या आप जानते हैं कि पचास के दशक में आरएसएस इस प्रगतिशील समाज का सबसे बड़ा विरोधी था !……
हम बात कर रहे हैं हिन्दू कोड बिल की…..संविधान सभा के सामने 11 अप्रैल 1947 को डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पेश किया था. यह बिल ऐसी तमाम कुरीतियों को हिंदू धर्म से दूर कर रहा था जिन्हें परंपरा के नाम पर कुछ कट्टरपंथी जिंदा रखना चाहते थे. इसका जोरदार विरोध हुआ.
मार्च 1949 से ऑल इंडिया एंटी हिंदू कोड बिल कमेटी सक्रिय थी. करपात्री महाराज के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक, हिंदू महासभा और दूसरे हिंदूवादी संगठन हिंदू कोड बिल का विरोध कर रहे थे. इसलिए जब इस बिल को संसद में चर्चा के लिए लाया गया तब हिंदूवादी संगठनों ने इसके खिलाफ देश भर में प्रदर्शन शुरू कर दिए. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अकेले दिल्ली में दर्जनों विरोध-रैलियां आयोजित कीं. महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा दिए जाने, तलाक का अधिकार दिए जाने और स्त्रियों को समानता का अधिकार दिए जाने जैसे प्रावधानों की वजह से हिंदू कोड बिल के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के कोने-कोने में प्रदर्शन किए
संघ के मुखपत्र कहे जाने वाले अखबार ऑर्गनाइजर में 2 नवंबर, 1949 के एक लेख में हिंदू कोड बिल को ‘हिंदुओं के विश्वास पर हमला’ बताया गया- ‘तलाक के लिए महिलाओं को सशक्त करने का प्रावधान हिंदू विचारधारा से विद्रोह जैसा है।’ ऑर्गनाइजर के अनुसार यह बिल परिवारों को तोड़ने वाला और संपत्ति के मामले में भाइयों को बहनों के खिलाफ करने वाला था।
11 दिसंबर, 1949 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आरएसएस ने एक जनसभा का आयोजन किया था जहां एक के बाद एक वक्ताओं ने बिल की निंदा की. एक वक्ता ने इसे हिंदू धर्म पर परमाणु बम गिराने की बात कही. दूसरे ने इसकी औपनिवेशिक सरकार द्वारा लादे गए कठोर रॉलेट एक्ट कानून से तुलना की. उसका कहना था कि जैसे वह कानून ब्रिटिश सरकार के पतन का कारण बना, उसी तरह बिल के खिलाफ आंदोलन नेहरू के सरकार के पतन का कारण बनेगा…….अगले दिन आरएसएस के कार्यकर्ताओं के एक दल ने संसद के लिए मार्च निकाला. ये लोग हिंदू कोड बिल मुर्दाबाद, पंडित नेहरू मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री और डॉ. अंबेडकर के पुतले जलाए और शेख अब्दुल्ला की कार में तोड़फोड़ भी की. स्वामी करपात्री महाराज जो बिल के एक धुर विरोधी नेता थे, ने डॉ. अंबेडकर पर जातिगत टिप्पणियां कीं और कहा कि एक पूर्व अछूत को उन मामलों में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है जो साधारणतः ब्राह्मणों के लिए सुरक्षित हैं.
तत्कालीन सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने तो अगस्त 1949 के अपने एक भाषण में कहा भी कि ‘आंबेडकर जिन सुधारों की बात कर रहे हैं, वे भारतीयता से बहुत दूर हैं। इस देश में विवाह और तलाक जैसे सवाल अमेरिकी या ब्रिटिश मॉडल से नहीं सुलझेंगे। हिंदू संस्कृति और कानून के अनुसार, विवाह एक संस्कार है, जिसे मृत्यु बाद भी बदला नहीं जा सकता। यह कोई ‘अनुबंध’ नहीं है।…
उसी दौरान एक साक्षात्कार में संघ के तत्कालीन मुखिया माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने कहा था कि हिंदू कोड राष्ट्रीय एकता और एकसूत्रता की दृष्टि से पूर्णत: अनावाश्यक है. उनका ये भी कहना था कि स्थानीय रीति-रिवाजों को सभी समाजों द्वारा मान्यता प्रदान की है.
इस भयंकर विरोध के कारण उस वक्त यह कानून लाया नही जा सका बाद में 1955 में नेहरू ने असली बिल को कई भागों में बांट दिया था. ओर 1955 में इसके पहले भाग- ‘हिंदू मैरिज एक्ट’- को बहुमत से पारित करवाकर उन्होंने इस पर कानून बनवा दिया.
यह है इनकी प्रगतिशीलता की असलियत
सच्चाई यह है कि जिस दिन सही मायनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रारूप आएगा सबसे ज्यादा विरोध किसी दुसरे धर्म के मतावलंबी नही करेंगे बल्कि सनातन धर्म के लोग ही करेंगे
क्या UCC का जो भी मसौदा है वो 1951 जो कि डाक्टर अंबेडकर ने तैयार किया था वही है या फिर मसौदे में परिवर्तन हुआ है और अगर परिवर्तन हुआ है तो नया मसौदा क्या है।
ucc का दरअसल अभी कोई मसौदा पेश ही नहीं किया गया है जहा तक डाक्टर amebdkar की बात आपने की उन्होंने भी ucc का कोई मसौदा बनाया नहीं था