म्यांमार की सीमा पर बसा मणिपुर भारत का एक संवेदनशील राज्य है, मणिपुर आज जल रहा और इसके लिए काफी हद तक केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारों की विघटनकारी राजनीति ज़िम्मेदार है.
मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई का प्रतिशत 53 और कुकी का 18 है. शेष आबादी में अन्य पहाड़ी जनजातियां आदि शामिल है जनजातीय क्षेत्र राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 90% हैं, लेकिन इसके बजट और विकास कार्यों का बड़ा अंश मैतेई बहुल इंफाल घाटी पर केंद्रित रहता है।
मणिपुर के जिस जनजाति संघर्ष की बात की जा रही है वो आज का नही बल्कि पहाड़ी समुदायों (नगा और कुकी) और मैतेई लोगों के बीच राजवंश शासन के समय से ही जातीय तनाव रहा है। मणिपुर की भाजपाई सरकार ने इस तनाव को बढ़ाने का ही काम किया जिसका नतीजा है पिछले 79 दिनों में मई से जुलाई तक 140 से ज्यादा मौतें, 300 से ज्यादा घायल 5000 हिंसक घटनाए 50000 लोगों का विस्थापन
दो दिन पहले महिलाओं के साथ जो बदसलूकी हुई है उसका वीडियो वायरल होने के बाद देश विदेश में थू थू हों रही है और मणिपुर के मुख्यमंत्री बिरेन सिंह कह है कि ऐसी तो 100 घटनाएं हुईं होंगी
मणिपुर में बीजेपी सत्ता में है और दिल्ली में भी सरकार भाजपा की ही है. अर्थात मणिपुर में ‘डबल इंजन’ सरकार है और इस डबल इंजन की सरकार ने वहा की स्थिति बिगाड़ने में कोई कमी नही छोड़ी
मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच हिंसा की मुख्य वजह हाईकोर्ट का एक आदेश है। इस आदेश में मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य के मैतेई समुदाय को ST का दर्जा देने की सिफारिश की थी।
इस आदेश के विरोध में कुकी समुदाय ने 3 मई को एक मार्च बुलाया गया था। इसी मार्च के साथ राज्य में हिंसा की शुरुआत हुई थी।
बीरेन सिंह सरकार यदि चाहती तो उसी वक्त स्थिति काबू हो जाती लेकिन उसने इस संघर्ष को रोकने के पर्याप्त कदम नही उठाए और मणिपुर इस हिंसा की आग में जलने लगा
कुकी समुदाय के खिलाफ सबसे वीभत्स हिंसा मैतेई समुदाय के हथियारबंद बहुसंख्यकवादी समूह जैसे अरम्बई तेंग्गोल और मैतेई लीपुन ने की है ऐसे कई वीडियो है जिसमे उन्मत्त भीड़ महिलाओं पर हमला करते समय ‘रेप हर, टार्चर हर’ के नारे लगा ररहि हैं यह जो वीडियो अभी चर्चित हो रहा है ये भी 4 मई का ही है
साफ़ है कि बीरेन सिंह सरकार पूरी तरह से नाकाम रही
दरअसल 2022 में बीरेन सिंह अपनें बहुसंख्यक वाद के एजेंडे के साथ ही सत्ता में आए थे 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी द्वारा सत्ता पर सफलतापूर्वक कब्जा करने से राज्य की जातीय राजनीति पर काफी प्रभाव पड़ा था अपने पुनरुत्थान के बाद से, भाजपा ने अन्य धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों को हाशिए पर रखते हुए मैतेई समुदाय को महत्वपूर्ण चुनावी पद प्रदान करने के लिए काम किया। नतीजतन, मणिपुर में जातीय राजनीति और तेज़ हो गई है
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस में सहायक प्रोफेसर थोंगखोलाल हाओकिप ने कहा कि बीरेन सिंह सरकार “बहुसंख्यकवादी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है और कुकीज़ को निशाना बना रही है क्योंकि उन्हें डर है कि सभी आदिवासी एक साथ आओ और वे उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे वह फूट डालो और राज करो की नीति खेल रहे हैं
2012 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ 2 फीसदी था। इतना ही नहीं, बीजेपी को मणिपुर विधानसभा चुनाव 2012 में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी
उत्तर पूर्वी राज्यों की राजनीती में दल-बदल एक सामान्य प्रवृति है. इसकी वजह से राजनीतिक हालात के बदलते देर नहीं लगती.
मणिपुर में 2017 में भाजपा ने (21) नेशनल पीपल्स पार्टी (4), नगा पीपल्स फ्रंट (4), लोजपा (1) और दो अन्य विधायकों के सहयोग से सरकार बनायी थी. एन बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बने थे. जो 2017 के चुनाव के 4 महिने पहले ही कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुऐ
बीजेपी मणिपुर के चुनावी मैदान में जहां मामूली खिलाड़ी थी, वहीं बड़ी पार्टी बनकर उभरी। आंकड़े हैरान कर देने वाले थे
इसकी वजह बनी बीजेपी की एक विशिष्ट स्ट्रेटजी
शिवम शंकर सिंह जो डेटा एनालिटिक्स और सोशल मीडिया जैसे क्षेत्रों में काम करते थे उन्होंने 2016 में आधिकारिक रूप से बीजेपी के लिए काम करना शुरू किया. सिंह बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष विचारक राम माधव के सानिध्य में काम करते थे.
अपने एक इंटरव्यू में शिवम शंकर सिंह बताते हैं बीजेपी के महासचिव राम माधव से उनसे संपर्क किया. उन्होंने मुझे 2017 में होने वाले मणिपुर चुनाव के मद्देनजर मणिपुर जाने को कहा. वहां न पार्टी का ऑफिस था और न ढांचा. हमने ग्राफिक डिजाइनर, शोधकर्ता रखे, एक कैंपेन टीम बनाई और कुछ सर्वे कराए. बीजेपी को 31 सीटें चाहिए थी लेकिन वह मात्र 21 जीत पाई. मार्च 2017 में छोटी पार्टियों के साथ मिलकर उसने सरकार बना ली.उसके बाद, वहां पर इनर लाइन परमिट पर पार्टी का प्रतिबद्ध नहीं हो पाना, मणिपुर पर नाकेबंदी और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) के साथ गुप्त संधि जैसे भावनात्मक मुद्दे बीजेपी के खिलाफ जाने लगे.
2020 में 06 विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया लेकिन फिर भी सरकार किसी तरह से बच गई
लेकिन 2022 में बीजेपी ने मणिपुर चुनाव में 32 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत हासिल कर लियाऔर फिर बहुसंख्यक वाद के एजेंडे पर उन्होंने अपने कदम आगे बढ़ाए
मार्च 2023 में बीरेन सिंह सरकार द्वारा 2008 के एसओओ समझौते को निलंबित कर दिया यह समझौता कुकी विद्रोही समूहों के खिलाफ अभियानों को निलंबित करने पर था
बीरेन सिंह सरकार की घोषणा कि वे नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) को लागू करने पर काम कर रहे हैं, आदिवासियों ने इस पर भी नाराजगी जताई.
मणिपुर घाटी में आदिवासी विधायकों के बीच असंतोष फैलने लगा कुकी जनजाति से मणिपुर विधानसभा में दस विधायक हैं, जिनमें से सात भाजपा विधायक हैं। कुकी जनजाति के कई भाजपा विधायक भी सीएम से नाराज हो गए वे दिल्ली भी आए लेकिन उन्हें कोई आश्वासन नही मिला
मई 2023 की शुरुआत में यह गुस्सा पूरी तरह से फूट पड़ा जब मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य के मैतेई समुदाय को ST का दर्जा देने की सिफारिश की
गृहमंत्री अमित शाह बाद में मणिपुर पहुंचे. उन्होंने वहां खूब बैठकें की परंतु नतीजा सिफर रहा. मणिपुर में अब भी हिंसा जारी है.अभी जो एक तरह गृहयुद्ध मणिपुर में चल रहा है उस को समाप्त करवाने की ज़िम्मेदारी बीजेपी की डबल इंजन की सरकार की ही है
एकदम तथ्यात्मक तथा सटीक विश्लेषण. Keep it up Girish Bhai
thanks