भेड़ बकरियों की तरह लोकल डब्बो में ठुसे हुए ‘कैटल क्लास’ में सफर करते लोग जब बुलेट ट्रेन के सपने दिखाने वालो को वोट देते है तब वह यह भूल जाते है कि उनकी बुनियादी जरूरतें क्या है……….
उड़ीसा के बालासोर में बहानगा बाजार स्टेशन के पास लगभग एक महीना एक भयानक हादसा हुआ था. यहां चेन्नई से हावड़ा जा रही 12841 कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई
एक महीना गुजर जानें के बाद बालासोर हादसे के 52 शवों की पहचान अब तक नहीं हो पाई है.
अब पता चला है कि यह भयानक घटना ‘एक्ट ऑफ गॉड’ नही बल्कि एक्ट ऑफ निकलिजेंस (असावधानी) था
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिरकार बालासोर ट्रेन दुर्घटना का कारण क्या था?
जांच के लिए गठित हाई लेवल कमिटी की रिपोर्ट लीक हुईं है जिसमें पता चला है कि इस हादसे से बचा जा सकता था और कई चेतावनियों पर ध्यान नहीं दिया गया.
रेलवे सुरक्षा आयुक्त का कहना है कि 2 जून को ट्रिपल-ट्रेन की टक्कर बहनागा बाजार स्टेशन पर किए गए सिग्नल-सर्किट परिवर्तन में खामियों के कारण हुई, जिसके परिणामस्वरूप कोरोमंडल एक्सप्रेस को गलत सिग्नल मिला सिग्नलिंग प्रणाली की खामियों के कारण ही ट्रेन को गलत सिग्नल मिला.
CRS की जांच रिपोर्ट में बताया गया कि लेवल-क्रॉसिंग लोकेशन बॉक्स के भीतर तारों की गलत लेबलिंग के बारे में सालों तक मालूम ही नहीं चला.
यहीं नहीं मेंटेनेंस के दौरान भी इसमें गड़बड़ी हुई है. अगर इन गड़बड़ियों को नजरअंदाज नहीं किया गया होता, तो हादसा टाला जा सकता था.
CRS की जांच में ये भी पता चला कि 2015 में वायरिंग डायग्राम को महज कागजों पर बदला गया और उसे मंजूरी भी दी गई. लेकिन लेबलिंग में बदलाव को फिजिकली नहीं किया गया था.
प्रैक्टिकल में टर्मिनल ट्रैक पर सर्किट के नाम तक को भी ठीक नहीं किया गया. रिपोर्ट में इसे गलत अक्षरों को लिखना बताया गया है. इसमें कहा गया है कि इन्हें सुधारने की कोशिश भी नहीं की गई.
आख़िर गलती क्या हो रही है ?
दरअसल सच्चाई यह है कि दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारत में हर रोज सवा दो करोड़ से भी ज्यादा लोग रेल की सवारी करते हैं। हर साल यह संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन रेलवे का सेफ़्टी स्टाफ कम होता जा रहा है
भारत में 66 प्रतिशत से अधिक रेल दुर्घटनाएं ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण होती हैं। 2017 में रेल सुरक्षा पर बनी एक टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट बताती है कि ट्रेन के पटरी से उतरने का मुख्य कारण ट्रैक का मेंटेनेंस नहीं होना है।
मेंटनेंस होगा कैसे ? स्टॉफ ही नहीं है
सरकारी मंत्रालयों में रेल मंत्रालय सबसे बड़ा है जिसमें एक साथ 13 लाख लोग काम करते हैं। यह संख्या कभी 15-16 लाख हुआ करती थी।
लेकिन मोदी सरकार ने नयी नियुक्तियों पर एक तरह से प्रतिबंध लगा रखा है।
सच्चाई यह है कि भारतीय रेलवे बड़ी तादाद में स्टॉफ की कमी से जूझ रहा है। रेलवे में सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिए कर्मचारियों की भारी कमी है गैंगमैन, गार्ड, लीवरमैन, केबिनमैन, यहां तक कि ड्राइवर जैसे पदों के लिए स्वीकृत की तुलना में बेहद कम लोगों के साथ काम कर रहे है। असिस्टेंट लोको पायलट, टेक्निशियन और लेवल-1 (सेफ्टी कैटेगरी से जुड़े ) हजारों पद ख़ाली है और जो पद भरे है उनसे दूसरे काम कराए जा रहे हैं पिछले साल केंद्र सरकार ने संसद में ही में बताया था कि रेलवे में जून 2022 में 2.97 लाख से अधिक पद खाली हैं
उड़ीसा में जहां दुर्घटना हुई है वो क्षेत्र पूर्वी तटीय रेलवे के अंतर्गत आता है अन्य जोन की तुलना में पूर्वी तटीय रेलवे में नियुक्ति संख्या काफी कम है 2018-19 में पूर्वोत्तर रेलवे में मात्र 6 लोगों की नियुक्ति हुई है। वहीं वर्ष 2019-20 में 1500, वर्ष 2020-21 में 7 लोगों को नियुक्ति मिली लेकिन वर्ष 2021-22 एवं वर्ष 2022-23 में किसी को भी नियुक्ति नहीं मिली
कहना न होगा कि इस स्थिति में वहीं होगा जो बालासोर में हुआ है
वंदे भारत ट्रेन चलाने या बुलेट ट्रेन चलाने से पहले ये जरूरी है कि पुरानी पटरियों को समय रहते बदला जाए रेलवे हर साल 4500 किलोमीटर लंबी पटरी बदलता रहे।
लेकिन मोदी सरकार में यह काम बिल्कुल ठप्प सा पड़ा है पटरियों की देखभाल और मरम्मत करने वाले ट्रैकमैन नियुक्त नही किए जा रहे पुराने लोग रिटायर हो रहे हैं
साफ़ दिख रहा है कि ऐसा ही चलता रहा तो ऐसी दुर्घटनाएं तो अभी और होंगी