हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने दिया सेब किसानो का साथ, अडानी की हुई बुरी हार

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हिमाचल एक ठंडा प्रदेश माना जाता है लेकिनवो हर साल इस वक्त सेब ख़रीद में अडानी एग्री की खुली लूट से गर्म होता आया है  हिमाचल में अडाणी 14-15 साल से सेब की खरीद कर रहा है। यह पहला मौका है जब अडाणी समूह को मंडियों में उतरकर सेब खरीदना पड़ रहा है।अडानी विश्व के तीसरे नंबर के अमीर के स्थान पर एक बार पुहंचे जरूर थे  लेकिन उनकी नीयत वही पुराने भारतीय साहूकार जैसी है जो काश्तकारों का खून चूसा करते थे

पिछले कई सालों से अडानी एग्रो फ्रेश सेब ख़रीद में अपनी मनमानी करता आया है दरअसल अडानी एग्रो फ्रेश सरकार के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए अपनी तरफ से रेट तय करती है जबकि हिमाचल प्रदेश में अपने खरीद केंद्र स्थापित करने के लिए सरकार ने उसे करोड़ों की सब्सिडी दी थीं लेकिन इस बार किसानो ने उसका पुरजोर विरोध किया है अडाणी ने अगस्त के आखिरी सप्ताह में सेब के रेट ओपन किए। तब प्रीमियम सेब का अडाणी ने 96 रुपए रेट खोला, जबकि ओपन मार्केट में सेब 150 रुपए प्रति किलो तक बिक रहा था। इससे बागवान समझ गए कि अडाणी ने कम रेट दिए है। इसलिए बागवानों ने अडाणी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया।

अडाणी से बागवानों के मुंह मोड़ने की बड़ी वजह प्रदेश की मंडियों में भी सेब का किलो के हिसाब से बिकना है। बीते साल तक बागवानों को यह पता नहीं चल पाता था कि उनका सेब कितने रुपए किलो बिका है, क्योंकि पूर्व में सेब वजन के हिसाब से नहीं बल्कि गड्ढ में बिकता था। कुछ बागवान 20 किलो की पेटी में 35 से 40 किलो तक सेब भर देते थे।इससे बागवानों को हर साल करोड़ों रुपए बड़ा नुकसान हो रहा था। कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में पहली बार सेब को किलो के हिसाब से बेचने की व्यवस्था की। इससे बागवान समझ पाए कि ओपन मार्केट में क्या रेट है और अडाणी क्या रेट दे रहा है।

हालांकि अडानी राज्य के कुल सेब उत्पादन का करीब तीन-चार फीसदी ही खरीद करता है, लेकिन चूंकि यह बहुत बड़ी कंपनी है, इसलिए अन्य खरीददार भी अडानी ग्रुप द्वारा घोषित मूल्य के आस-पास ही खरीद करते हैं इसलिए अडानी द्वारा घोषित मूल्य ही पूरे बाजार के लिए बेंचमार्क बन जाता है और अडानी द्वारा घोषित खरीद मूल्य ही किसानों की नियति बन जाती है

 पिछले कुछ सालों के दौरान जब भी अडाणी ने सेब के रेट ओपन किए है तो मार्केट हर बार गिरी है, जबकि अडाणी के रेट ओपन करने से मार्केट कम नहीं बल्कि बढ़नी चाहिए, क्योंकि इनका सेब मार्केट में न जाकर चार-पांच महीने स्टोर में रहता है।

इस लिहाज से डिमांड और सप्लाई के गणित को आधार माना जाए तो सेब के रेट बढ़ने चाहिए, लेकिन प्रदेश में कुछ सालों से इसके उल्ट हो रहा है। इस बार भी अडाणी के रेट ओपन करने के बाद सेब के बाजार भाव कुछ कम हुए है।

हिमाचल में अडाणी के तीन जगह सैंज, बिथल और रोहड़ू में स्टोर है। इनकी सेब स्टोर करने की क्षमता 25 हजार मीट्रिक टन की है।बागवानों के बायकॉट की वजह से अडाणी के हिमाचल में चल रहे तीन CA (कंट्रोल एटमॉस्फेयर) स्टोर खाली रह गए है। पांच सितंबर तक कुल क्षमता का दो फीसदी सेब भी अडाणी को नहीं मिल पाया है। इन्हें भरने के लिए अब अडाणी प्रबंधन को मंडियों में जाकर ओपन बोली लगानी पड़ रही है  और किसानो को इस साल सही रेट देना पड़ रहा है

अडाणी के प्रवक्ता ने बताया कि रोहड़ू, सैंज और बिथल में उनके CA स्टोर है। इन स्टोर के साथ लगती मंडियों में ओपन बोली में उनके कर्मचारी पार्टिसिपेट करेंगे और सेब खरीदेंगे। ऐसा करके तीनों स्टोर को भरा जाएगा। यानि इस बार अडानी को मुँह की खानी पडी है इस बार कांग्रेस की सरकार है जबकि पिछले कई सालो से हिमाचल की बीजेपी सरकार अडानी के पक्ष में खड़ी हो जाती थी

इसके साथ ही यह बात भी है कि जो लोग यह मानते है कि कारपोरेट सेक्टर जब कृषि क्षेत्र में प्रवेश करेगा तो किसानों को ज्यादा कीमत मिलेगी वो अब अपने दिमाग का इलाज करवा ले दरअसल कारपोरेट सिर्फ और सिर्फ अपना मुनाफा देखता है

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