कल मोदी सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव की आड़ में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति व सेवा संबंधी विधेयक को राज्यसभा में पेश किया। इसके तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब तीन सदस्यीय समिति करेंगी। जिसके प्रधानमंत्री अध्यक्ष होंगे जबकि लोकसभा में विपक्ष के नेता व पीएम द्वारा नामित केंद्रीय मंत्री इसके सदस्य होंगे।
स्वतंत्र चुनाव आयोग लोकतंत्र की रक्षा के लिए सबसे जरुरी घटक है अब इसे ही खत्म किया जा रहा है
आखिर 2019 के आम चुनाव में एक चुनाव आयुक्त ने ऐसा क्या किया था जो 2024 के लिए मोदी अपने लिए खतरा महसूस कर लगे? ये समझना बेहद जरुरी है
1991 में एक चुनाव आयुक्त की जगह तीन चुनाव आयुक्त की व्यवस्था की गयी चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 के अनुसार, यदि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की किसी मामले पर राय अलग-अलग होती है, तो ऐसे मामलों का निर्णय बहुमत की राय के अनुसार किया जाता है। आयोग नियमित बैठकें आयोजित करके और कागजात वितरित करके अपना काम करता है। आयोग के निर्णय लेने में सभी चुनाव आयुक्तों का समान अधिकार होता है।
2019 के चुनाव में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के अलावा अशोक लवासा और सुशील चंद्रा भी चुनाव आयुक्त थे
दरअसल 2019 के आम चुनाव में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ मिली आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों की जांच के लिए गठित समिति में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, अशोक लवासा और सुशील चंद्रा शामिल थे। मोदी औऱ शाह को क्लीन चिट दिए जाने पर चुनाव आयुक्त लवासा का मत बाकी दोनों सदस्यों से अलग था और वह इन आरोपों को आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में मान रहे थे। लेकिन बहुमत से लिए गए फैसले में दोनों के आचरण को आचार संहिता का उल्लंघन नहीं मानते हुए क्लीनचिट दे दी गई। सिर्फ इतना ही नहीं लवासा के मत को भी रिकॉर्ड पर नहीं लिया गया। लवासा चाहते थे कि उनकी अल्पमत की राय को रिकॉर्ड किया जाए. उनका आरोप है कि उनकी अल्पमत की राय को दर्ज नहीं किया जा रहा है,
अशोक लवासा हरियाणा कैडर के (बैच 1980) के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं. लवासा का 37 सालो का प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कैरियर रहा है वह भारत के चुनाव आयुक्त बनने से पहले वो 31 अक्तूबर 2017 को केंद्रीय वित्त सचिव के पद से सेवा-निवृत्ति हुए थे. इसके बाद उन्हें चुनाव आयुक्त बनाया गया था
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान आचार संहिता के कथित तौर पर उल्लंघन के मामले में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ शिकायतों वाले चुनाव आयोग के क्लीन चिट देने के फैसले पर असहमति जताई थी. उन्होंने पीएम मोदी और अमित शाह से जुड़े पांच मामलों में क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया था। ये मामला वर्धा में एक अप्रैल, लातूर में नौ अप्रैल, पाटन और बाड़मेर में 21 अप्रैल तथा वाराणसी में 25 अप्रैल को हुई रैलियों में मोदी के भाषणों से संबंधित था।
मोदी ने एक रैली में अपने फर्स्ट टाइम वोटर से अपनी बालाकोट में हुई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर वोट मांगे थे यह घोर आपत्तिजनक बयान था लेकिन चुनाव आयोग ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन नहीं माना , और चुनाव आयोग ने पाकिस्तान के खिलाफ देश के परमाणु शस्त्रागार के उपयोग के प्रधानमंत्री के आकस्मिक आह्वान में भी कोई उल्लंघन नहीं माना उनके इस बयान में कुछ भी गलत नहीं पाया गया चुनाव आयोग ने शाह को उस बयान के लिए भी दोषमुक्त कर दिया जिसमें उन्होंने वायनाड निर्वाचन क्षेत्र की तुलना पाकिस्तान से की थी।
अशोक लवासा ने इन्ही को लेकर लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान आचार संहिता के कथित तौर पर उल्लंघन के मामले में मोदी को नोटिस भेजने का सुझाव दिया, जिसे स्वीकार नहीं किया गया.
कम से कम छह शिकायतें ऐसी थीं जिनमें पीएम को क्लीन चिट दे दी गई
चुनाव आयोग ने इस आधार पर असहमति की राय को शामिल नहीं करने को उचित ठहराया था कि चूंकि उल्लंघन पर निर्णय अर्ध-न्यायिक निर्णय नहीं था, इसलिए असहमति दर्ज नहीं की गई थी। हालाँकि, एक पूर्व सीईसी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एमसीसी उल्लंघन के मामलों में भी ऐसी असहमतिपूर्ण राय को अंतिम आदेश में शामिल किया जाना चाहिए।
जब पुणे के आरटीआई कार्यकर्ता विहार दुर्वे ने यह जानने के लिए एक आरटीआई लगाई कि लवासा की इन टिप्पणियों में आखिर क्या लिखा है ? तो उसका जवाब देते चूना आयोग आरटीआई अधिनियम के तहत चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की असहमति वाली टिप्पणियों का खुलासा करने से इनकार करते हुए कहा कि ‘यह छूट-प्राप्त ऐसी सूचना है जिससे ”किसी व्यक्ति का जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है’
जैसे ही पता चला कि लवासा ने चुनाव आयुक्त के पद पर रहते हुए मोदी के लिए प्रतिकूल टिप्पणियां लिखी है उनके विरुद्ध पूरे प्रशासनिक अमले को सक्रिय कर दिया गया तुरंत लवासा की पत्नी, बेटे और बहन को आय से अधिक संपत्ति और इनकम घोषित न करने के आरोपों में नोटिस भेज दिया गया…..
लेकिन इससे भी मोदी सरकार का जी नही भरा.. फिर इस बात की जांच कराई गयी कि विद्युत मंत्रालय ने अपने सभी पीएसयू के चीफ विजिलेंस ऑफिसरों को यह पता लगाने का आदेश दिया कि कहीं लवासा के विद्युत मंत्रालय में 2009 से लेकर 2013 के कार्यकाल के दौरान कुछ कंपनियों को फायदा तो नहीं पहुंचाया गया।
बाद में जब पेगासस प्रोजेक्ट रिपोर्ट सामने आई तो पता लगा कि इस रिपोर्ट में पेगासस से निगरानी के लिए जारी सूची में पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का नंबर भी शामिल है.
साफ है कि तीन में से एक व्यक्ति भी अपनी विचारधारा का न हो तो वो पूरी चुनाव प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डाल सकता है यही सत्ताधारी दल को पसंद नहीं है आइल ही ऐसा कानून बनाया जा रहा है कि तीनो ही अपने लोग हो
यहाँ एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि क्या अशोक लवासा को इसलिए हटा दिया गया क्योकि वह ‘ईवीएम-वीवीपैट में खामियां ढूंढने में दिलचस्पी दिखा रहे थे ?
true journalist पर बने रहिए
मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति से जुड़े बिल को गुरुवार को राज्यसभा में पेश किए जाने को लेकर आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. इस बिल में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) के चयन बोर्ड से भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को हटाने का प्रावधान है.
इस चयन बोर्ड में सीजेआई की जगह प्रधानमंत्री मोदी की ओर से एक मंत्री को शामिल करने का प्रावधान है. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उसकी आलोचना की है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी का अब सीजेआई पर कोई विश्वास नहीं रह गया है जिस वजह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बिल लाकर पलट दिया गया है.