दुनिया की टॉप फोर ऑडिटिंग कंपनियों में से एक डेलॉइट ने अडानी ग्रुप के पोर्ट कंपनी के ऑडिटर पद से इस्तीफा दे दिया है इसके तार भी हिंडनबर्ग रिसर्च से जुड़े हैं. डेलॉइट ने अडानी पोर्ट के उन 3 ट्रांजेक्शंस को लेकर चिंता व्यक्त की थी, जिनका उल्लेख हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में किया गया था.
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में “कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला” कहा था
ऑडिटर ने कंपनी के खातों पर एक ‘क्वालिफ़ाइड ओपिनियन’ जारी किया था जिसमें कहा गया था कि तीन संस्थाओं के साथ अडानी पोर्ट्स के लेन-देन को असंबंधित पक्षों से लेन-देन नहीं दिखाया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऑडिटर ने यह भी कहा था कि स्वतंत्र बाहरी जांच कराने से इसे कंफर्म करने में मदद मिल सकती थी, लेकिन अडानी पोर्ट्स ने उसके लिए मना कर दिया।
डेलोइट हास्किन्स एंड सेल्स को अडानी पोर्ट के वैधानिक ऑडिटर के रूप में पांच वर्षों में से केवल एक वर्ष पूरा करने के बाद ही इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया डेलॉयट वित्त वर्ष 2018 से अदानी पोर्ट कंपनी का ऑडिट कर रही है. कंपनी की FY22 वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, इसे पिछले साल ही पांच साल की अवधि के लिए वैधानिक लेखा परीक्षक के रूप में फिर से नियुक्त किया गया था.
पिछले मई में भी डेलॉइट हास्किन्स की भारतीय इकाई ने अदानी पोर्ट्स और तीन संस्थाओं के बीच लेनदेन पर चिंता जताई थी. ऑडिटर ने उस समय कहा था कि वह अडानी के दावों को सत्यापित नहीं कर सका और यह निर्धारित नहीं कर सका कि व्यवसाय पूरी तरह से स्थानीय कानूनों का अनुपालन कर रहा था या नहीं
3 सौदों को लेकर खड़े किये थे सवाल
डेलॉयट ने कंपनी के खातों पर अपनी टिप्पणी में 3 सौदों को लेकर सवाल खड़ा किया था। इसमें अनुबंधकर्ता से वसूली जाने वाली राशि शामिल है जिसका जिक्र हिंडनबर्ग रिपोर्ट में भी किया गया था। डेलॉयट हैसकिन्स एंड सेल्स ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 की चौथी तिमाही और पूरे वित्त वर्ष के ऑडिट के बारे में अपनी रिपोर्ट में तीन यूनिट्स के साथ सौदों को हाइलाइट किया था। हालांकि, एपीएसईजेड का कहना था कि इन इकाइयों का समूह की कंपनियों से कोई लेना-देना नहीं है। ऑडिटर ने साथ ही कहा था कि वह कंपनी के बयान को सत्यापित नहीं कर सकती, क्योंकि इसके सत्यापन को लेकर कोई स्वतंत्र जांच नहीं हुई है। फिलहाल अडानी ग्रुप ने अकाउंटिंग फर्म MSKA & Associates को अडानी ग्रुप एंड स्पेशल इकॉनोमिक जोन्स (APSEZ) का ऑडिटर नियुक्त किया है। ग्रुप ने डेलॉयट के स्थान पर कंपनी में नया ऑडिटर रखा है।
दरअसल अडानी के बिजनेस तरीके को समझना ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। ये समूह sbi जैसे सरकारी समूह से, शुरुआती कर्ज ले और फिर इसे, समूह की अन्य कंपनियों के बीच, एलएलपी और अन्य निजी कंपनियों के नेटवर्क के बीच गोल गोल घुमाते रहते है फिर कर्ज द्वारा मिले इन पैसों को, इस कंपनी से उस कंपनी में, समय समय पर जरूरत के मुताबिक स्थानांतरित करते है इससे स्टॉक की कीमत बढ़ती है और लोन लिया जाता है
बिजनेस समूह की आय के लिए, इन्हें भी समूह की अन्य कंपनियों के नेटवर्क में शामिल कर लिया जाता है, और फिर इसे सूचीबद्ध समूह की कंपनियों में पुनर्निवेश किया जाता है। फिर कर्ज में डूबे पी एंड एल खातों को किनारे करने के लिए, उपरोक्त के साथ, जोड़ कर, एक साथ पी एंड एल खाते को तैयार करते हैं। और ऐसा करके, निवेशक के मन में यह भ्रम उत्पन्न कर दिया जाता है कि, समूह की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ है। समूह, इसके बदले में, कभी भी ऋण डिफॉल्ट के बारे में सोचे बिना, निवेशकों/बैंकों से, अतिरिक्त धन उगाहने में लग जाता है। एक प्रकार से यह यह एक विशाल पौंजी पोंजी बिजनेस मॉडल की तरह है, जिसमें एक को कुछ देने के लिए दूसरे को लूटने की जरूरत आ पड़ती है।
इस तरह के बिजनेस मॉडल के लिए, गंभीर ऑडिटर की भूमिका कई सवाल खड़े करती है इसलिए ही डेलाइट ने इस्तीफा दिया है
14 अगस्त 2023 को अडानी महाघोटाले पर आने वाली सेबी (SEBI) की रिपोर्ट आने वाली है देखते है उसमे क्या निकल के आता है
तथ्यों पर गौर करती महत्वपूर्ण रिपोर्ट।
आगे देखना रोमांचक होगा की होता है क्या,,?
फिलहाल जिज्ञासा का क्षण है।