EVM मामले पर सुप्रीम कोर्ट की मौखिक टिप्पणी पर हंसने के बजाए यह समझिए की याचिका क्या है

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इस देश का मीडिया यदि खबरों को सही संदर्भ के साथ प्रस्तुत करे तो भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है पर अफसोस ऐसा होता नहीं है अब कल सुप्रीम कोर्ट की एक हियरिंग का ही उदाहरण लीजिए आज एक हेडलाइन सभी मीडिया ग्रुप ने लगाईं है कि evm औऱ vvpat से संबंधित मामले में याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई कि कितनी बार यह मुद्दा उठाया जाएगा

लेकिन मामला क्या है ये किसी भी न्यूज़ वेबसाइट ने समझना जरुरी नहीं समझा दरअसल इस याचका में वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के माध्यम से मतदाताओं द्वारा उनके द्वारा डाले गए वोटों के क्रॉस-सत्यापन की मांग की गई है। याचिका में, एनजीओ ने चुनाव पैनल और केंद्र को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है कि मतदाता वीवीपीएटी के माध्यम से यह सत्यापित कर सकें कि उनका वोट “रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है”।

वर्तमान याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत चुनाव आयोग मामले में 2013 के अपने कथित फैसले में निर्देश दिया था कि चुनाव प्रक्रिया में “प्रणाली में पूर्ण पारदर्शिता होनी चाहिए और मतदाताओं का विश्वास बहाल होना चाहिए”। अदालत ने माना था कि “पेपर ट्रेल” स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की एक अनिवार्य आवश्यकता थी” और ईसीआई को ईवीएम में वीवीपीएटी पेश करने का निर्देश दिया था।

“यह मतदाता की संतुष्टि और सत्यापन है जो चुनावी लोकतंत्र के केंद्र में है, न कि केवल ईसीआई, डोमेन विशेषज्ञों, राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों की। ‘मतदाता सत्यापन योग्य’ का अर्थ है कि प्रत्येक मतदाता को यह सत्यापित करने में सक्षम होना चाहिए: सबसे पहले, कि उनका वोट ‘डालने के रूप में दर्ज किया गया है’; और, दूसरी बात, कि उनका वोट ‘रिकॉर्ड के अनुसार गिना गया’ है,”

याचिका में कहा गया कि प्रचलित प्रक्रिया, जिसके माध्यम से ईसीआई केवल सभी ईवीएम में इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड किए गए वोटों की गिनती करता है और संबंधित ईवीएम को वीवीपीएटी के साथ प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में केवल पांच रैंडम रूप से चयनित मतदान केंद्रों में सत्यापित करता है, निम्नलिखित कारणों से दोषपूर्ण है-

1. ईवीएम में मतदाता की पसंद की इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग वोट के ‘रिकॉर्डेड एज़ कास्ट’ के रूप में सत्यापित होने के मानदंड को पूरा नहीं करती, क्योंकि मतदाता केवल वीवीपैट का सत्यापन करता है।

2 . किसी भी मतदाता के लिए यह सत्यापित करने का कोई तरीका नहीं है कि उनके व्यक्तिगत वोट को वास्तव में ‘रिकॉर्ड किए गए’ के रूप में गिना गया है, क्योंकि वीवीपैट से मिलान करने के लिए उनके लिए ईसीआई द्वारा प्रदान की गई कोई प्रक्रिया नहीं है, जिसे उन्होंने ‘कास्ट के रूप में दर्ज’ को क्या वास्तव में प्रमाणित में गिना जाता है

3. चुनाव संचालन नियम, 1961 की धारा 66-ए से शामिल किए गए नियम 56(डी)(4)(बी) में ही प्रावधान है कि वीवीपैट की गिनती ईवीएम में दिखाए गए नंबर पर प्रबल होगी, जो वैधानिक प्रवेश/पावती है कि यह अंततः वीवीपीएटी है, जो मतदाता की इच्छा को सटीक रूप से कैप्चर करता है और ईवीएम में दर्ज परिणामों में अंतर/त्रुटियों/दुर्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में वीवीपैट का 100% उपयोग होने वाला पहला चुनाव था – प्रत्येक ईवीएम के साथ एक वीवीपैट जुड़ा हुआ था। वोट डालने के बाद, मतदाता सात सेकंड की अवधि के लिए वीवीपैट में मुद्रित एक पेपर स्लिप देख सकता है जिसमें चयनित उम्मीदवार का नाम और प्रतीक प्रदर्शित होता है। फिर पर्ची वीवीपैट के एक सीलबंद ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है।

अब इस याचिका पर चुनाव आयोग की तरफ से यह हलफनामा दाखिल किया गया है. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अमित शर्मा के माध्यम से हलफनामा दाखिल किया है. इस हलफनामे में चुनाव आयोग ने ADR की याचिका का विरोध किया है. चुनाव आयोग ने एडीआर की याचिका को अस्पष्ट और आधारहीन बताया है. साथ ही यह भी कहा कि ईवीएम की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करने का एक और प्रयास है हलफनामे में कहा गया है कि, मतदाता को वीवीपैट के माध्यम से यह सत्यापित करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है कि उनका वोट डाला गया है और दर्ज के रूप में गिना गया है.

इस हलफनामे पर अब ADR अब अपना जवाब देगा जिसके जल्द सुनवाई की बात प्रशांत भूषण कर रहे थे इसी सुनवाई के दौरान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि यह मुद्दा कितनी बार उठाया जाएगा? यह अदालत पहले ही जांच एक प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर चुकी है सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले की सुनवाई नवंबर में करेगा. याचिकाकर्ता को केंद्र के हलफनामे पर जवाब देने को कहा गया है

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