बात अभी नही होगी तो कब होगी
लोग कह रहे हैं अभी तो खुशी का वक्त है चंद्रयान 3 सफल हुआ है अभी क्यों पुराने पाप गिना रहे हो
हम कहते है कि आज ही तो लोग सुनना समझना चाहेंगे कि इसरो के साथ क्या हो रहा है केसे उसे निजीकरण की तरफ धकेला जा रहा है
आज ही लोगो को जानना चाहिए कि 2023 मे मोदी सरकार ने अंतरिक्ष विभाग के बजट में भारी कटौती की हैं….. उन्हे यूनियन बजट में मात्र 12,543 करोड़ रुपये ही आवंटित किए, जो पिछले साल की तुलना में 9 फीसदी कम थे 2022 में, अंतरिक्ष विभाग (DoS) को वार्षिक बजट में 13,700 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे,
आज ही लोगो को जानना चाहिए कि चंद्रयान 3 के लिए जिस कम्पनी ने वो व्हीकल बनाया जिससे रॉकेट को असेंबली बिल्डिंग से लॉन्च पैड तक ले जाया गया जिस कंपनी ने चंद्रयान का लांच पैड बनाया उसकेे इंजिनियर को मोदी सरकार ने 17 महीने से सैलरी नहीं दी है
आज ही लोगो को जानना चाहिए कि केसे मोदी सरकार नेहरू जी के द्वारा स्थापित इसरो के बजाए PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल ) का ठेका प्राइवेट कंपनियों को दे रही है,
आज ही लोगों को जानना चाहिए कि इसरो में निजीकरण का विरोध करने वाले एक बड़े वैज्ञानिक को जहर देकर मारने की कोशिश की गयी
आज ही लोगो को जानना चाहिए कि इसरो का निजीकरण किया जा रहा है भारत सरकार अब इसरो से बाहर के किसी व्यक्ति/कंपनी को उपग्रह प्रक्षेपण यान बनाने का ठेका दे रही है. यह ठेका एनएसआईएल के माध्यम से दिया जा रहा है
दरअसल NSIL इसरो का ही पार्ट था ओर शुरू में ISRO का कार्यकारी निकाय माना जाता था. फिर मोदी जी प्रधानमंत्री बने उसके बाद इसे धीरे से इसरो से अलग कर के लॉन्च वाहनों, उपग्रहों और अन्य मालिकाना उत्पादों के उत्पादन के लिए को जिम्मेदार बनाया गया
अब इसने स्वतंत्र रूप में कार्य करते हुए PSLV की बोलियां मंगाई है शुरुआत में 5 पीएसएलवी के लिए बोलियां आमंत्रित की गयी है,
अब मोदी राज में किसी क्षेत्र का निजीकरण हो ओर उसमे अडानी जी या अम्बानी जी का रोल न हो ऐसा संभव ही नही है इसलिए PSLV बनाने के इस कॉन्ट्रेक्ट को पाने की होड़ में अडानी ग्रुप सबसे आगे है और नाम के लिए BHEL ओर लार्सन एंड टर्बो (एलएंडटी) को भी शामिल किया गया है ये कुल तीन कम्पनिया ही इस कांट्रेक्ट के लिये आगे आयी है……
ये मत सोचिएगा कि इसरो जैसे संस्थान के निजीकरण की शुरुआत अभी हुई है ….दरअसल गेम तो सालो पहले सेट किया जा चुका था 2017 में इतिहास में पहली बार इसरो ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया इसके तहत इसरो ने बैंगलोर स्थित अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज के नेतृत्व में एक निजी क्षेत्र के साथ तीन साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, इसरो ने अल्फा डिजाइन कंसोर्टियम को इन उपग्रहों को असेंबल करने के लिए चुना था.
यह अल्फा डिजाइन कंपनी अडानी की फंडिंग से खड़ी हुई थी अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज उस इतालवी डिफेंस फर्म इलेटट्रॉनिका की मुख्य भारतीय साझेदार भी है, जिसका नाम भारत में कथित तौर पर कमीशन खिलाने के लिए ‘पनामा पेपर्स’ में सामने आया था,
निजीकरण के बारे में आपको यह भी जानने की जरूरत है कि इसरो में निजीकरण का विरोध करने वाले एक बड़े वैज्ञानिक को जहर देकर मारने की कोशिश की गयी …..
यह खुलासा स्वंय उसी वैज्ञानिक ने जनवरी 2021 में किया जब उनके रिटायरमेंट में कुछ ही दिन बचे हुए थे, हम बात कर रहे हैं अहमदाबाद स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के पूर्व निदेशक तपन मिश्रा की जो एक जाने माने वैज्ञानिक रहे हैं सीनियोरिटी के हिसाब से तपन मिश्रा वह व्यक्ति थे जिनका सिवन के बाद इसरो का अगला प्रमुख बनाया जाना लगभग तय था, लेकिन उनके द्वारा निजीकरण का विरोध किये जाने से उनका डिमोशन कर दिया गया उनको पद से हटाकर इसरो का सलाहकार बना दिया गया।
जनवरी 2021 में उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में यह खुलासा किया कि मुझे शक है कि मुझे नाश्ते में जहर दिया गया था. मैं चाहता हूं कि इसकी जांच की जाए.
तपन मिश्रा ने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि 23 मई 2017 को उन्हें जानलेवा आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड दिया गया था. यह उन्हें उनके प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान इसरो हेडक्वार्टर बेंगलुरु में चटनी और दोसाई में मिलाकर दिया गया था. जिसे उन्होंने लंच के कुछ देर बाद हुए नाश्ते में खाया था. इसके बाद से वे पिछले दो साल से लगातार बुरी हालत में हैं, तपन मिश्रा ने पोस्ट में लिखा है कि देश के प्रसिद्ध फोरेंसिक स्पेश्लिस्ट डॉ सुधीर गुप्ता ने उन्हें बताया कि उन्होंने अपने जीवन में जहर के जीवित स्पेसीमेन को पहली बार देखा है
तपन मिश्रा को जहर दिए जाने के बहुत दिनों के बाद उन्हें पता लगा कि जहर दिया गया है,बाद में निजीकरण को लेकर उनकी असहमति की खबरे भी मीडिया में आई
टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इसरो के उपक्रमों के निजीकरण को लेकर तपन मिश्रा और मौजूदा चेयरमैन के. सिवन के बीच सहमति नहीं थी, मिश्रा को उनके पद से हटाने से एक दिन पहले ही भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया था. इस करार से तपन मिश्रा सहमत नहीं थे और उन्होंने इसका विरोध किया, डॉ तपन का कहना था कि निजी क्षेत्र अभी स्पेस टेक्नॉलजी के मामले में परिपक्व नहीं है। उसे सैटलाइट्स और पीएसएलवी बनाने की जिम्मेदारी दी गई, तो इसरो की वर्षों से बनी साख पर बट्टा लग जाएगा। इसके साथ ही गोपनीय स्पेस कार्यक्रमों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ेगी !
लेकिन अगले ही दिन इसरो के चेयरपर्सन के. सिवन ने एक आदेश जारी कर कहा, ‘तपन मिश्रा को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त किया जाता है। उन्हें इसरो मुख्यालय में वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किया जाता
ये थी तपन सिन्हा की कहानी
अब लगता है कि चंद्रयान 3 की सफलता निजीकरण के नए द्वार खोल देगी