मणिपुर हिंसा की अनटोल्ड स्टोरी : कैसे बीजेपी ने मणिपुर में सरकार बनाने के लिए कुकी उग्रवादी संगठनों की मदद ली !…

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जो लोग आसान भाषा में आपको यह समझा रहे हैं कि मणिपुर में कुकी ईसाई है और मैतईं हिन्दू और इसी वज़ह से उनमें आपस में झगड़े हो रहे हैं वो आपको सिर्फ़ और सिर्फ़ बेवकूफ बना रहे हैं और नेरेटिव सेट कर रहे है

मणिपुर की समस्या पिछली सदी की शुरुआत से चली आ रही हैं मणिपुर में उग्रवाद का लम्बा इतिहास रहा है और उतनी ही पुरानी है जातीय हिंसा,…..पहाड़ी समुदायों (नगा और कुकी) और मैतेई लोगों के बीच राजवंश शासन के समय से ही जातीय तनाव रहा है 1950 के दशक में स्वतंत्रता के लिये चले नगा आंदोलन ने मैतेई और कुकी-ज़ोमी समुदायों में विद्रोह को जन्म दिया। 1964 में यहां यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) की शुरुआत हुई. इसे मणिपुर के स्थानीय मैतेई समूह और विद्रोही आंदोलन की मातृ संस्था के नाम से जाना जाता है, कुकी-ज़ोमी समूहों ने 1990 के दशक में ‘कुकीलैंड’ (भारत के भीतर एक अलग राज्य) की माँग करने के लिये अपन सैन्यीकरण किया। इसने उन्हें मैतेई से अलग कर दिया

 

लेकिन आज ये लेख इस पर नही है ये लेख है कि कैसे डबल इंजन की सरकार ने मणिपुर को एक अंतहीन गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया

 

2005 से एक एक नया चलन विकसित हुआ और वो था उग्रवादी समूहों और राजनेताओं के बीच संबंधो का स्थापित होना

 

2012 के मणिपुर विधानसभा चुनावों में बीजेपी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी तो केसे 2022 मे उसने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली?

 

यह जानना बहुत दिलचस्प है !

 

आश्चर्य की बात है कि मणिपुर हिंसा के इस पहलू पर हमारा मुख्य मीडिया खामोश हीं बना रहा

 

साल 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले देश के उत्तरपूर्वी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की मौजूदगी कुछ ख़ास नहीं थी लेकिन फिर वहा की कमान सौपी गई राम माधव को और 2918 आते आते उत्तर पूर्व क्षेत्र के आठ राज्यों में भाजपा विधायकों की संख्या पंद्रह गुना बढ़ गई – 2013 में नौ से बढ़कर 2018 में 140 हो गई।

 

पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी का कमल खिलाने में एक डेटा एनिलिस्ट का भी बड़ा हाथ था जिसे राम माधव लेकर आए थे वह थे शिवम शंकर सिंह

शिवम शंकर सिंह ने अगस्त 2016 से अप्रैल 2018 के बीच भाजपा के लिए डेटा विश्लेषक का काम किया था. बाद में शिवम शंकर सिंह ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और एक किताब लिखीं जिसका शीर्षक था “How to win an Indian election”

 

दरअसल पूर्वोत्तर में बीजेपी का अस्तित्व नहीं था. कांग्रेस और अन्य पार्टियां वहां मौजूद थीं शिवम शंकर सिंह ने पहली बार डेटा की मदद से चुनावी रणनीति बनाई और सोशल मीडिया के जरिए मतदाता समूहों को लक्ष्य बना कर स्ट्रेटेजी तैयार की

 

शिवम शंकर सिंह लिखते हैं कि बीजेपी के महासचिव राम माधव ने मुझे 2017 में होने वाले मणिपुर चुनाव के मद्देनजर मणिपुर जाने को कहा. वहां न पार्टी का ऑफिस था और न ढांचा. हमने ग्राफिक डिजाइनर, शोधकर्ता रखे, एक कैंपेन टीम बनाई और कुछ सर्वे कराए. …….पड़ताल से हमने जाना कि कौन से बूथ सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ हैं. हमने सर्वे डेटा, जाति और अर्थ-सामाजिक तथ्यांकों को मिलाया. हमने फोकस समूह चर्चाएं की और जानना चाहा कि कौन से जातीय और आदिवासी समुदाय किन पार्टियों को वोट देते हैं..संसदीय और विधान सभा चुनावों का डेटा निर्वाचन आयोग से लिया और उन्हें जोड़ कर ट्रेंड की पड़ताल की.

 

पूर्वोत्तर में हमने बीजेपी के लिए ऐसे हिंदू समुदायों की पहचान भी की जो मुस्लिम समुदाय के कट्टर विरोधी हैं. उनके लिए संदेश भेजा जाता कि मुस्लिम आबादी हिंदुओं से अधिक हो जाएगी. यह सच नहीं था लेकिन ऐसे संदेशों से पार्टी भावनाओं को भड़काती थी इसके साथ ही फेक न्यूज भी भेजे जाते जैसे सीरिया का विडियो भेज कर कहा जाता कि देखो मुजफ्फरनगर में क्या हो रहा है.

 

ध्यान दीजिएगा कि 3 मई 2023 में मणिपुर में हुऐ जिस यौन हमले का लोहमर्षक कांड सामने आया है उसके पीछे भी ऐसा ही फेक वीडियो है

 

2017 में मणिपुर में बीजेपी को बहुमत की 31 सीटें तो नही मिल पाई लेकिन उसने चुनाव से चार महीने पहले कांग्रेस के बीरेन सिंह को अपनें में शामिल कर 21 सीटे जीत ली. और मार्च 2017 में अन्य छोटी पार्टियों जैसे नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), एक तृणमूल कांग्रेस विधायक और एक निर्दलीय के साथ गठबंधन कर बीजेपी ने मणिपुर में सरकार बना ली.

 

लेकिन बीजेपी की इस जीत के पीछे एक बहुत बड़ा राज था जिसका खुलासा 2023 में हुआ

 

ये पता लगा कि असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और राम माधव, दोनो आरएसएस – बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के प्रभारी थे उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कुकी उग्रवादी संगठनों की मदद ली थी।

 

यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट (यूकेएलएफ) के अध्यक्ष एसएस हाओकिप ने बकायदा एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि, 2017 में, उनके संगठन और एक अन्य कुकी संगठन यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) ने राम माधव और हिमंत बिस्वा सरमा के साथ एक समझौते के अनुसार, भाजपा उम्मीदवारों को निर्वाचित कराया।

 

उन्होंने लिखा, ”मैंने राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के गठन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्पष्ट रूप से कहें तो यदि इन्हें हमारा समर्थन नहीं मिला होता तो राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार स्थापित करना लगभग असंभव होता। हाल ही में संपन्न संसदीय चुनाव में, भाजपा उम्मीदवार ने हमारे ऑपरेशन के क्षेत्र में लगभग 80-90 प्रतिशत वोट हासिल किए

 

यह पत्र यूकेएलएफ के हाओकिप द्वारा 8 जून, 2023 को एनआईए कोर्ट में दायर हलफनामे के साथ संलग्न किया गया था

 

यह पत्र केसे सामने आया इसकी कहानी भी सुन लीजिए

 

10 मार्च को, मणिपुर की बिरेन सिंह सरकार ने दो समूहों-कुकी नेशनल आर्मी (KNA) और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (ZRA) के साथ SoO समझौते को वापस ले लिया, उन पर यह आरोप लगाया कि वे वन अतिक्रमणकारियों के बीच आंदोलन को प्रभावित कर रहे थे।

 

स्पष्ट था कि ये बात कुकी नेताओ को नागवार गुजरी और उन्होंने सारी पोल पट्टी खोल दी

 

और यही से अभी हो रही मणिपुर हिंसा की नींव पड़ी

 

मणिपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाय. चन्द्रचूड़ को बताया था कि “मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के खिलाफ आन्दोलन तो हिंसा का केवल बहाना था.”

 

इंडिया टुडे एनई की रिपोर्ट कहती हैं कि कुकी विद्रोही नेता ने SoO समझौते में राहत की मांग करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री से अपनी अपील में अतीत में भगवा पार्टी पर किए गए उपकारों का हवाला दिया।…हालाँकि, भाजपा नेता राम माधव ने इस आरोप से इनकार किया और हाओकिप से मिलने से इनकार किया और इसलिए मदद के सवाल को खारिज कर दिया।

 

लेकिन सब जानते हैं कि यह सच था ऐसे ही समझौते 2017 में बीजेपी ने त्रिपुरा मे भी किए और वहा भी शिवम शंकर सिंह की रणनीति और ऐसे ही एग्रीमेंट से सीपीएम की दशकों पुरानी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया

 

2017 से 2022 के बीच कुकी विद्रोही समुह के साथ बीजेपी का हनीमून पीरियड चलता रहा और इसके परिणाम स्वरूप 2020 में अपनी ये लोग अलगाववादी मांग से हटकर स्वायत्त परिषदों की मांग पर उतर आए थे।

 

2022 के चुनाव में तो कुकी उग्रवादी संगठनों ने जिसमे कुल 23 संगठन ( कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) के बैनर तले 15 और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) के तहत आठ ) ने खुलकर बीजेपीके पक्ष में वोट डलवाए

 

ये सभी समूह भारत सरकार के साथ संचालन निलंबन (एसओओ) समझौते का पालन कर रहे थे

SoO समझौते के अनुसार, सुरक्षा बलों और विद्रोही समूहों दोनों को एक-दूसरे के खिलाफ कोई सशस्त्र अभियान शुरू नहीं करना चाहिए।

SoO मे शामिल समूहों ने भारत के संविधान और देश के कानूनों का पालन करने और मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को स्वीकार की थी इस समझौते के उग्रवादी कैडरों को निर्दिष्ट शिविरों में सीमित रखा जाता है और उन्हें 5,000 रुपये का मासिक वजीफा दिया जाता है। निर्दिष्ट शिविरों के रखरखाव के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है।

 

2022 में जब मणिपुर विधानसभा चुनाव नजदीक थे तब इस डबल इंजन की सरकार ने गृह मंत्रालय से SoO समझौते के तहत कुकी समूहों के सदस्यों के लिए ‘बैकलॉग मासिक वजीफा’ के रूप में मणिपुर राज्य सरकार को 15.7 करोड़ रुपये दिलवाए और

मणिपुर की राज्य सरकार ने अगले सप्ताहों में विद्रोही समूहों के बीच धन का वितरण किया।

25 फरवरी को कुकी विद्रोही संगठनों ने मणिपुर के सभी कुकी-बहुल क्षेत्रों में भाजपा के उम्मीदवारों के समर्थन में एक बयान जारी किया। यह वह समय था जब मणिपुर में चुनावी अभियान चरम पर पहुंचने लगा था।

कुकी विद्रोहियों की इस खुली मदद से बीजेपी की राजनीतिक स्थिति बहुत मजबूत हुई और 2022 मे बीजेपी ने चुनाव में 32 सीटों पर जीत दर्ज की ओर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई

 

और 2023 की शुरआत में उसने हर उस वादे को तोड़ दिया जो पर्दे के पीछे उन्होंने कुकी विद्रोहियों से किया था

हमारा मीडिया इन सारी बातो को छुपा गया

पिछ्ले महीने इम्फाल के मणिपुर प्रेस क्लब में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, मणिपुर बार काउंसिल के अध्यक्ष पी टोम्चा ने आरोप लगाया कि एसओओ के तहत सशस्त्र कुकी उग्रवादी राज्य में हो रहे मौजूदा संकट के संबंध में भारत सरकार को ब्लैकमेल कर रहे हैं, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए हैं और 40,000 से अधिक लोग बेघर हो गए हैं।

वकीलों के निकाय के अध्यक्ष ने कहा कि कुकी उग्रवादियों ने खुले तौर पर कहा था कि उन्होंने 2017 में सरकार बनाने में और 2020 के राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा का समर्थन किया था, जब भाजपा नेताओं ने कुकी की राजनीतिक आकांक्षाओं के समाधान का आश्वासन दिया था।

आशा है कि ये सब तथ्य जानने के बाद स्थिति पाठको के लिऐ आईने की तरह साफ़ हो गई होगी

सच्चाई यह है कि मणिपुर आज जल रहा और इसके लिए काफी हद तक केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारों की विघटनकारी राजनीति ज़िम्मेदार है. और लोग मारे

जाएँ उसके पहले इस गृहयुद्ध को समाप्त करवाने की ज़िम्मेदारी भी उनकी ही है

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