क्या मोदी सजंय गाँधी की राह पर है ?

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~ अपूर्व भारद्वाज की कलम से

70 के दशक के मध्य में भारत एक बड़े आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा था। कम बारिश से फसल उत्पादन में जबरदस्त गिरावट आई थी, अंतरराष्ट्रीय संकट की वजह से तेल की कीमत आसमान छू रही थी, और महँगाई अपने चरम पर थी।तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के बेटे संजय गांधी सोचते थे कि इन सारी समस्याओं को हल करने का एक ही तरीका आबादी को नियंत्रित करना है, भले ही इसके लिए साम, दाम दंड या भेद प्रयोग करना पड़े

आज कमोबेश वैसे ही हालात है यूसीसी और जनसंख्या कानून का ड्राफ्ट आ रहा है, तमाम मंचों पर बहस जारी है सबको पता है कि हम 2024 में जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल जाएंगे!! लेकिन इस सब में नया क्या है यह बात तो 50 के दशक से इस देश के नीति निर्धारकों को पता है तो फिर अचानक इस कानून की क्यो आवश्यकता क्यो पड़ गई ??

1975 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाया गया था लेकिन नसबंदी कार्यक्रम को लागू करने के लिए लाखो डॉलर का ऋण 1972 में ही ले लिया था इसलिए इंदिरा सरकार को इसे हर हाल में लागू करना था जिसके लिए लोकतांत्रिक तरीके से लागू करना लगभग नामुमकिन था बहुत से लोग सोचते है कि आपातकाल केवल राजनीतिक कारणों से लगा था लेकिन वो भुल जाते है कि अर्थनीति ही राजनीति को चलाती है जब इंदिरा गाँधी तमाम प्रयास करने के बाद भी इसे लागू नही कर पाई तो उन्होंने आनन फानन में आपातकाल थोप दिया था जो उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती थी

इस सामूहिक नसबंदी में केवल दो साल में लगभग 1 करोड़ पुरुषों की नसबंदी की गई, 10 लाख महिलाओ का जबरन IUD ऑपरेशन किया गया और ऑपरेशन के दौरान दो हजार लोगों की जान चली गई पूरी गाय पट्टी नसबन्दी पट्टी में बदल गई थी इसका सबसे ज्यादा खामियाजा निम्न वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को उठाना पड़ा। उन्हें जबरदस्ती उठा लिया गया और उनकी नसबंदी करवाई गई थी

हालात यह थे कि सैलरी, स्कूल एडमिशन और गाड़ियों के लाइसेंस के लिए भी नसबंदी का प्रमाण पत्र अनिवार्य हो गया था संजय गाँधी सोचते थे कि इस सबका उनको राजनीतिक रूप से बहुत फायदा होगा वो देश की जीडीपी को दोगुना कर लेंगे और अपनी छवि एक मजबूत और निर्णय लेने वाले नेता के रूप में बना लेंगे इस सब मे मीडिया , बालीवुड और तमाम सत्ताभोगी संस्थाओं ने उनका भरपूर साथ भी दिया लेकिन संजय गाँधी सत्ता के अहंकार में यह बात भूल गये थे कि जाने अनजाने में उन्होंने ऐसी जगह हाथ डाल दिया था जो भारत की पितृ सत्ता और पुरुष प्रधान समाज को चुनौती देता था

नतीजतन, 1977 के चुनावों में, इस जबरन नसबंदी के कारण इंदिरा गांधी को लोगों के वोटों से हार का सामना करना पड़ा, खासकर पूरे गाय बेल्ट में और कभी नही हारने वाली उनकी माँ खुद का चुनाव भी हार गई थी उन दो वर्षों को भारतीय लोकतंत्र के अंधकार युग के रूप में याद किया जाता है।

आज मोदी संजय के रोडमेप पर ही चल रहे है उनके एजेंडे में कामन सिविल कोड और जनसंख्या कानून बरसो से है उन्हें भी हर समस्या के पीछे बढ़ती आबादी ही नजर आ रही है और वो बिलकुल वो ही गलती कर रहे है जो संजय गाँधी कर चुके है विहिप जैसे संगठन वन चाइल्ड पालिसी का विरोध कर रहे है क्योकि वो इस समाज की सच्चाई जानते है जनसंख्या रोकना जरूरी है लेकिन मानवीय मूल्यों की कीमत पर तो हरगिज नही जरूरत से ज्यादा ताकत फायदा से ज्यादा नुकसान करती है

कहते है इतिहास अपने आप को दोहराता है तो क्या हम मोदी का संजय गाँधी अवतार देखने वाले है क्या अब संजय मोदी होगा इस सवाल का जवाब 2024 देगा 🎯🎯🎯

 

  1. ~अपूर्व भारद्वाज #घोरकलजुग #डाटावाणी

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