इस मानसून सत्र में आरटीआई कानून को खत्म किया जाएगा : जी हां ये सच है

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हम सभी जानते है कि आरटीआई कानून देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने के लिए कितना जरुरी कानून है लेकिन अब इस कानून पर एक गहरा संकट खड़ा हो गया है संसद के मानसून सत्र में इस बार डेटा प्रोटेक्शन बिल लोकसभा और राज्यसभा में पेश हो रहा है. यह बिल देश के नागरिकों के डिजिटल डेटा को सुरक्षित करने को लेकर है लेकिन इस बिल की आड़ में मोदी सरकार आरटीआई कानून का गला घोंट रही है

इस डेटा प्रोटेक्शन बिल में धारा 2, धारा 29(2) और धारा 30(2) में जो प्रावधान रखे गए हैं। उससे आरटीआई कानून के पूरी तरह से बेअसर हो जाने खतरा है

आइये समझते है ये कैसे किया जा रहा है

इस प्रस्तावित डेटा प्रोटेक्शन बिल में धारा 2 की उपधारा 12, 13 एवं 14 में पर्सनल डाटा की जो परिभाषा बताई गई है। उसमें न केवल व्यक्ति की जानकारी बल्कि पूरे राज्य, कंपनी अथवा किसी संस्था की भी जानकारी शामिल की गई है।

इसी प्रकार धारा 30(2) में आरटीआई कानून की धारा 8(1)(जे) पूरी तरह से हटा दिया गया है।

दरअसल इस डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक में सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (1) (जे) में संशोधन करने की योजना है ताकि व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण के साथ-साथ प्रावधान पर छूट से संबंधित पूरे हिस्से को हटा दिया जा सके।

इस प्रकार, सार्वजनिक सूचना अधिकारी इसका उपयोग किसी व्यक्ति से संबंधित किसी भी जानकारी को देने से मना कर सकते है

प्रस्तावित विधेयक, पृष्ठ 30 (बिंदु 30(2)) पर, आरटीआई अधिनियम में इस प्रकार संशोधन का प्रस्ताव करता है:

” (2) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 की उप-धारा (1) के खंड (जे) को निम्नलिखित तरीके से संशोधित किया जाएगा: (ए) शब्द “जिसके प्रकटीकरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जो व्यक्ति की गोपनीयता में अनुचित आक्रमण का कारण होगा जब तक कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकारी, जैसा भी मामला हो, संतुष्ट है कि व्यापक सार्वजनिक हित ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता है” को हटा दिया जाएगा;

बी। परन्तुक हटा दिया जाएगा।”

इस प्रकार, संशोधित धारा पढ़ेगी और छूट देगी:

(जे) वह जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है।

यदि यह संशोधन किया जाता है, तो किसी व्यक्ति से संबंधित सभी जानकारी देने से इनकार किया जा सकता है। अधिकांश जानकारी किसी व्यक्ति से संबंधित होती है; इसलिए, यह कानून उन पीआईओ के लिए इनकार करने का अधिकार बन जाएगा जो जानकारी नहीं देना चाहते हैं।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदे की धारा 30(2) सूचना के प्रकटीकरण से छूट से संबंधित सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन करना चाहती है।

भारत के सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम को दुनिया के सबसे अच्छे पारदर्शिता कानूनों में से एक माना गया है। यह मानता है कि नागरिक ही राष्ट्र के शासक होते हैं। वे सच्चे शासक और सरकार के मालिक हैं। इसकी मान्यता में, आरटीआई अधिनियम उनकी सरकार से सभी जानकारी तक पहुंचने के उनके अधिकार को मान्यता देता है

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत , धारा 8 (1) (जे) व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण से छूट देती है जो सार्वजनिक गतिविधि का हिस्सा नहीं है या किसी व्यक्ति की गोपनीयता का उल्लंघन है। कानून के अनुसार, व्यक्तिगत जानकारी को छूट दी जा सकती है यदि वह किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से संबंधित नहीं है, या किसी व्यक्ति की गोपनीयता पर अनुचित आक्रमण का कारण बनेगी।

जिसने भी यह दावा किया है कि प्रकटीकरण को धारा 8(1)(जे) के तहत छूट प्राप्त है, उसे घोषणा करनी होगी कि वे यह जानकारी संसद को नहीं देंगे।

यह स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध और गोपनीयता के लिए पर्याप्त सुरक्षा पर संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के अनुरूप है। लेकिन अब सब चीजे बदलने जा रही है

एक और ख़ास बात है और वो ये है कि धारा 29(2) में डाटा प्रोटेक्शन बिल को अब तक के बनाए गए समस्त कानूनों में सर्वोपरि बताया गया है।धारा 29 (2) कहती है कि प्रस्तावित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून और किसी अन्य कानून के बीच टकराव की स्थिति में , डेटा संरक्षण कानून प्रभावी होगा।

यदि यह कानून पास हो गया तो यह तय मानिए कि आने वाले समय में आम जनमानस को निजता के नाम पर लोक हितकर और सरकारी योजनाओं में हो रहे भ्रष्टाचार से संबंधित कोई भी जानकारी नहीं मिल पाएगी

1 Comment

  1. अगर यह खबर आप तक पहुंच रही है इसका मतलब विपक्ष मैं बैठी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस इसका विरोध क्यों नहीं कर रही और राहुल प्रियंका कहां है खुलकर हर बात क्यों नहीं कह रहे मोन रहना भी एक तरह का समर्थन है कम से कम सांसदों संसद में संजय सिंह के पीछे ही खड़े हो जाएं तब भी देश में अच्छा संदेश जाएगा… किसान आंदोलन के समय भी यही बात कही थी सब कुछ होने के बाद साथ आने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है जनता भी समझती है मौके का फायदा उठा कर राजनीति करने आए हैं

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