अडानी ग्रुप-हिंडनबर्ग रिसर्च मामले में एक नया दावा किया गया है। इस मामले मे एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में आरोप लगाया है कि सेबी (SEBI) ने साल 2014 में अडानी ग्रुप के खिलाफ डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (DRI) के एक अलर्ट को छिपाया था। यह अलर्ट अडानी ग्रुप की कंपनियों के संभावित फंड डाइवर्जन और स्टॉक मार्केट में छेड़छाड़ के बारे में था। इसमें कहा गया है कि सेबी ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपने स्टेटस रिपोर्ट में इस अलर्ट का जिक्र नहीं किया है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि सेबी का एक सदस्य का अडानी ग्रुप से संबंध था, जोकि हितों के टकराव की श्रेणी में आता है। याचिकाकर्ता अनामिक जयसवाल की ओर से दायर एफिडेविट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप मामले की जांच में हितों का टकराव है क्योंकि सेबी का एक कर्मचारी भी इसमे शामिल है जोकि सिरिल श्रॉफ की बेटी हैं और उनकी शादी करन अडानी से हुई है, जोकि अडानी ग्रुप के चेयरपर्सन गौतम अडानी के बेटे हैं।
शिरिल श्रॉफ सिरिल अमरचंदानी मंगलदास लॉ फर्म में एमडी हैं। वह सेबी की कॉर्पोरेट गवर्नेंस कमेटी के सदस्य हैं, जोकि इंसाइडर ट्रेडिंग से जुड़े अपराधों को देखती है। यह भी आरोप लगाया है कि सेबी ने अडानी ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए सेबी एक्ट में कई बदलाव किए। इस मामले में सेबी ने ना सिर्फ आंखें मूंद ली बल्कि इस मामले में अडानी ग्रुप को लाभ पहुंचाने के लिए एक्ट में भी बदलाव किए।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सेबी से हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अदानी ग्रुप की जांच करने को कहा था
सेबी का कहना है कि उसने इस बात की जांच पूरी कर ली है कि अडानी ग्रुप की कंपनियों ने सिक्योरिटीज कानूनों का उल्लंघन किया है या नहीं
सेबी ने 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट सौंपी थी। इसी रिपोर्ट पर आपत्ति लेते हुए याचिकाकर्ता अनामिका जायसवाल ने आठ सितंबर को अपने हलफनामे में कहा कि सेबी ने अडानी ग्रुप के बारे में डीआरआई के एक अलर्ट को छिपाया जनवरी 2014 में डीआरआई ने एक अलर्ट में आशंका जताई थी कि अडानी ने पैसों का गबन किया और इन्हें दुबई और मॉरीशस के रास्ते अडानी ग्रुप की लिस्टेड कंपनियों में निवेश किया गया।
हलफनामे में कहा गया है कि डीआरआई ने तत्कालीन सेबी चीफ यूके सिन्हा को 31 जनवरी, 2014 को एक चिट्ठी भेजी थी। इसमें आशंका जताई जा गई थी कि अडानी ग्रुप की कंपनियां गबन किए गए पैसों से शेयर मार्केट में छेड़छाड़ कर रही है। इनका काम करने का तरीका यह है कि पावर इक्विपमेंट के इम्पोर्ट की कीमत बढ़ाचढ़ाकर दिखाई जा रही है।
हलफनामे में कहा गया है कि 2014 में, राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) संयुक्त अरब अमीरात स्थित सहायक कंपनी से अडानी समूह की विभिन्न संस्थाओं द्वारा उपकरण और मशीनरी के आयात के अधिक मूल्यांकन के मामले की जांच कर रहा था। उस समय, डीआरआई ने तत्कालीन सेबी अध्यक्ष को एक पत्र भेजकर सचेत किया था कि अडानी समूह की कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में हेरफेर किया जा सकता है, जो बिजली उपकरणों के आयात में ओवर वैल्यूएशन के तौर-तरीकों का उपयोग करके पैसे निकाल सकते हैं।
पत्र के साथ एक सीडी भी थी जिसमें 2,323 करोड़ रुपये की हेराफेरी के सबूत थे और डीआरआई द्वारा मामले की जांच की जा रही थी। हलफनामे में आरोप लगाया गया है कि सेबी ने इस जानकारी को छुपाया और डीआरआई अलर्ट के आधार पर कभी कोई जांच नहीं की।
लेकिन यह चौंकाने वाली बात है कि सेबी ने न्यायालय के समक्ष आज तक उक्त पत्र (डीआरआई पत्र) की प्राप्ति और डीआरआई से साक्ष्य का खुलासा नहीं किया है।
इसके अलावा हलफनामे में यह भी कहा गया है कि सेबी ने न केवल आंखें मूंद लीं, बल्कि अडानी समूह के नियामक उल्लंघनों और मूल्य हेरफेर को बचाने और माफ करने के लिए नियमों और परिभाषाओं में लगातार संशोधन भी किए। इसमें शामिल हैं-
1. एफपीआई नियमों में संशोधन- नियमों में निर्दिष्ट किया गया था कि शेयर बाजार में नामित डिपॉजिटरी प्रतिभागी यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक के पास अपारदर्शी संरचनाएं नहीं हैं। इसे 2018 में सेबी द्वारा संशोधित किया गया था, जिसके तहत ‘अंतिम लाभकारी मालिकों’ को पीएमएलए, 2002 के तहत परिभाषित ‘लाभकारी मालिक’ के समान अर्थ के लिए फिर से परिभाषित किया गया था। इसके बाद, 2019 में, एफपीआई नियमों में ‘अपारदर्शी संरचना’ खंड पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया और इसकी जगह ‘पीएमएलए के तहत सभी आवश्यकताओं का अनुपालन’ कर दिया गया।
2. एलओडीआर में संशोधन- सेबी एलओडीआर (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकता) ने ‘संबंधित पक्ष’ को कंपनी अधिनियम की धारा 2(76) के तहत वही अर्थ के रूप में परिभाषित किया था। 2018 में सेबी द्वारा ‘संबंधित पार्टी’ की परिभाषा में संशोधन किया गया था, जिसमें एक अलग प्रावधान जोड़ा गया था, जो किसी सूचीबद्ध कंपनी के प्रमोटर समूह के किसी सदस्य या इकाई को संबंधित पार्टी के रूप में तभी समझा जा सकता है, जब उस व्यक्ति की शेयरधारिता कम से कम 20 फीसद हो।
कहा जाता है कि सैया भये कोतवाल तो डर काहे का
इसी तरह से अडानी के समधी ही जब सेबी की जांच में शामिल हो तो वे भला अडानी के खिलाफ रिपोर्ट कैसे दे सकते है सेबी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश की गयी रिपोर्ट अपने आप में ही बड़ा सुबूत है कि कैसे तथ्यों को छुपाया गया है