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संजय वर्मा की कलम से

किसी काम से राजवाड़ा जा रहा था। कलेक्ट्रेट के पास बच्चों के एक जुलूस की वजह से गाड़ियां रुक गईं । पहले लगा स्कूल या सरकार प्रायोजित कोई पर्यावरण रैली है । पर मामला अलग था !

ये बच्चे ज्ञानोदय आवासीय स्कूल के थे ( अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के बच्चों का आवासीय स्कूल ) ये बच्चे अपनी मांगों को लेकर 15 किलोमीटर दूर से पैदल आ रहे थे । एक कतार में ,अनुशासन के साथ नारे लगाते हुए । साथ में न कोई टीचर ना कोई नेता ! पर ऐसे चलते थे जैसे आंदोलनों में उम्र खपाई हो । मुझे जिज्ञासा हुई । कार साइड में खड़ी की । जाकर पूछा तो कहने लगे पिछले 3 सालों से पढ़ाई नहीं हो रही , किताबें नहीं है,हॉस्टल में खाना खराब मिलता है और सबसे बड़ी बात हमारा एक साथी कल रात पहली मंजिल से गिरकर घायल हो गया , स्कूल वालों ने इलाज तक नहीं कराया । हम बच्चे ही उसे अस्पताल ले गए और चंदा कर उसका इलाज करवाया।

 

सातवीं आठवीं क्लास के छोटे-छोटे मासूम बच्चे । फिर ऊपर से गरीब। उम्र से और भी छोटे लगते थे। जिज्ञासा और करुणा के मिले-जुले जज्बातों ने मुझे रोक लिया।

बच्चे कलेक्टर कार्यालय के गेट के सामने जमीन पर बैठ गए । तेज धूप , बारिश की उमस और उस पर बच्चे 15 किलोमीटर पैदल चल कर आए थे । सुबह से अन्न का एक दाना नहीं , पानी का एक कतरा नहीं । मगर उनके हौसले भूख प्यास पर भारी थे ।

वे चाहते थे कलेक्टर साहब बाहर आकर उनसे बात करें । एक एसडीएम महोदय आए । समझाने लगे आप में से कोई पांच बच्चे अंदर चलो और अपना ज्ञापन दो । बच्चों ने आपस में सलाह की । यदि 5 बच्चे गए तो अंदर अफसर दबाव बनाकर बहला फुसला देंगे । उनके अचेतन में राजा के कारिदों द्वारा डराने , बहलाने ,छले जाने की सामूहिक स्मृतियां थी । बच्चों ने मना कर दिया । एसडीएम साहब ने देर तक कोशिश की । बच्चे समझ गए साहब थाली के पानी में चांद दिखा रहे हैं । समझौता वार्ता फेल हो गई । हारकर साहब ने उन्हें कलेक्टर कार्यालय के अंदर आने की अनुमति दी । बच्चे पोर्च में बैठ गए । नारे लगते रहे । इस बीच छात्र संघ की राजनीति करने वाले कुछ नेताओं ने बीच में पड़ने की कोशिश की , मगर बच्चे इतने भी बच्चे नहीं थे । उन्होंने हाथ जोड़कर कहा हमारी लड़ाई हमें लड़ने दीजिए। एसडीम साहब मुस्कुराए- जब इनका कोई नेता ही नहीं तो बात किससे करें , कोई नेता बनने की कोशिश करता है तो वे उससे तुरंत त्यागपत्र लिखवा लेते हैं । मैंने कहा इसमें समस्या क्या है कलेक्टर साहब बाहर क्यों नहीं आ सकते । कहने लगे इस तरह तो सारा प्रोटोकॉल ही खत्म हो जाएगा । मैंने कहा नेताओं के लिए तो होता ही रहता है,आज इन मासूमों के लिए सही । मामला उलझता जा रहा था । प्रदर्शन को ढाई घंटे हो गए थे । साहब लोग हैरान थे । पीएससी की परीक्षा में बच्चों से कैसे डील करें का कोई विषय उन्होंने नहीं पढ़ा था । एक बच्चा बेहोश हो गया । बच्चों के कुम्हलाए चेहरे देखकर कलेजा मुंह को आता था। मैने पास की दुकान से पानी की बोतलें बुलवाईं , केले बुलवाए । बच्चों ने पानी की बोतल ले लीं , केले के लिए मना कर दिया । हम भूखे रहेंगे । एक ने उठकर कहा थोड़ा-थोड़ा पानी पीना रे , एक बोतल में से 3 जने ! मजाल है किसी बच्चे ने ज्यादा पानी पिया हो । बस एक दो घूंट पीकर अपने साथी को बोतल दे देते थे ।

साहिर ने इन्हीं के लिए तो कहा था – भूख ने हमको जन्म दिया/ मेहनत ने हमको पाला है ! मैं सोच रहा था बच्चों ने यह सब कहां से सीखा होगा ? क्या किसी टीचर ने इन्हे लोकतंत्र का ककहरा सिखाया होगा या किसी किताब में उन्होंने गांधी का पाठ पढ़ा ? तीन घंटे बीत गए थे । मुझे न ऑफिस याद आया ना अपने काम । मैं सब भूलकर बच्चों की लीलाएं देख रहा था , जैसे कोई सूरदास कृष्ण की लीलाओं पर निहाल हो रहा हो । मैने बच्चों के लिए अपने भीतर ढेर सारी ममता महसूस की । जी चाहा एक एक बच्चे को गले लगाऊं । कुछ को लगाया भी !

आखिरकार कलेक्टर साहब बाहर आए ।बच्चों से प्यार से मिले । अफसर की तरह नहीं एक पिता और दादा की तरह । बच्चे भाव समझते हैं । तुरंत मान गए । प्रदर्शन समाप्त हुआ ।मैंने कहा अब तो केले खा लो , तो ले लिए।कलेक्टर साहब ने उन्हें बसों में स्कूल छुड़वा दिया ।

अखबार में बाद में पढ़ा शाम को वे स्कूल भी गए थे । उम्मीद है ,बच्चों की सारी समस्याएं हल हो गई होंगी । पर मेरी उम्मीद इससे भी बढ़कर है । बच्चों ने विरोध का पाठ पढ़ लिया है । गांधी किताब के पन्ने से निकलकर उनके विचार में आ गए हैं । एक दिन ये बच्चे केमिस्ट्री के फार्मूले भूल जाएंगे , गणित के समीकरण भूल जाएंगे पर यह दिन उनकी स्मृतियों में हमेशा रहेगा । जब भी कोई उनका हक मारेगा तो इस दिन की याद उन्हे हौसला देगी ,लड़ने की ताकत देगी । यह देश जो सड़कों पर उतरना भूल चुका है, जिसके लिए विरोध का मतलब एक व्हाट्सएप संदेश से ज्यादा नहीं है, वहां ये बच्चे इस देश की उम्मीद हैं । इन बच्चों के पैरों के छाले लोकतंत्र की बिंदी है, सौंदर्य हैं । इन्हीं बच्चों में से कल कोई गांधी अंबेडकर और लोहिया पैदा होगा ।

शाबाश बच्चों ! इसी तरह मजबूत बने रहना ।

2 Comments

  1. Just love ❤️ those children 🎉

  2. वाह, कितना सुंदर दृश्य रहा होगा। भविष्य इन्ही निष्फल और कोमल बच्चो के हाथ मे जरूर निखरेगा।

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