नए एम्स खोलने को लेकर हर साल झूठ बोलती आई है मोदी सरकार

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ़्ते अपने बयान में कहा था – “बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए असम के गुवाहाटी से लेकर पश्चिम बंगाल के कल्याणी तक, झारखंड के देवघर से लेकर बिहार में दरभंगा तक इस प्लानिंग के साथ नए-नए एम्स खोले गए हैं ताकि लोगों को इलाज के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर न जाना पड़े.”

 

इस बयान के बाद मोदी जी ट्रोल हो गए क्योंकि देवघर में बिल्डिंग तो छोड़िए नींव खुदना भी शुरु नही हुई और मोदी जी ने फेंकने की हद पार करते हुए एक तरह से बोल दिया कि वहा ईलाज चल रहा है

 

बिहार के यू ट्यूबर उस खाली जमीन की साइट दिखा कर मजाक उड़ा रहे है

 

लेकिन इनका काम ही झूठ बोलना है पिछ्ले साल मदुरै में एक सभा को संबोधित करते हुए जेपी नड्डा ने कहा कि मदुरै में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की स्थापना से जुड़ा 95 फीसदी काम पूरा हो चुका है और प्रधानमंत्री मोदी जल्द ही इसे जनता को समर्पित कर देंगे।

 

कांग्रेस के नेता मदुरेई के उस स्थान की तस्वीर शेयर कर दावा किया था कि वहां काम तो अभी तक शुरू भी नहीं हुआ है सांसद ने दावा किया कि जेपी नड्डा ने जिस AIIMS के 95 प्रतिशत बन जाने की बात कही है, वहा एक ईंट भी नहीं रखी गई है

 

यहीं हाल देवघर का भी है

 

दरअसल मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स, 2015 में 7 नए एम्स और 2017 में दो एम्स का ऐलान किया लेकिन 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले, मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स यानी आखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान बनाने का ऐलान किया…….. पर यह सारे एम्स जुमले साबित हुए ……

 

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में एक साथ देश मे 6 एम्स बने थे देश में दिल्ली के अलावा छह अन्य स्थानों रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर में एम्स अस्पतालो को चालू किया गया, लेकिन उसके बाद मोदी सरकार ने जितने भी एम्स बनाने की घोषणा की है उसमें से एक एम्स भी पूरा नही हुआ है

 

खास बात यह है कि इनमे से अधिकांश एम्स बनने की तारीख अप्रेल 2021 बताई गई थी लेकिन किसी भी जगह कोई काम पूरा नही हुआ है कही तो जमीन के पते नही है कही तो बजट का आवंटन ही नही किया गया

 

जो एम्स आधे अधूरे खुले हैं उनमें डाक्टर ही नहीं है स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री डॉ. भारती प्रवीन ने 15 मार्च 2022 को राज्यसभा में बताया कि देश में कुल 19 एम्स हैं। जिनमें शिक्षकों के 4,209 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से मात्र 1,998 पद ही भरे गये हैं और 2,211 पद खाली पड़े हैं। कुल पदों के लगभग आधे यानी 47.4% पद खाली पड़े हैं। सीनियर रेजिडेंट के 2,794 पद स्वीकृत है जिनमें से 1,190 पद यानी 42.5% पद खाली पड़े हैं। जूनियर रेजिडेंट के 2,638 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 470 पद खाली पड़े हैं। इन सभी 19 एम्स में ग़ैर-शिक्षक कर्मचारियों के 35,346 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 17,804 पद खाली पड़े हैं। यानी आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं

 

देश में कोई गरीब या मध्यवर्गीय व्यक्ति और कई बार अरुण जेटली और सुषमा स्वराज जैसे नेता-मंत्री भी बीमार पड़ते हैं तो इलाज के लिए अक्सर उनकी पहली पसंद एम्स यानी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान होता है. पहले देश में एक ही एम्स दिल्ली में था. लेकिन अब देश में छह और एम्स कार्यरत हैं, जिनका निर्माण पिछली सरकारों के समय हो गया था. एम्स अपनी क्वालिटी और सस्ते इलाज के लिए जाने जाते हैं. प्राइवेट अस्पतालों का इलाज ज्यादातर लोगों की पहुंच के बाहर होने के कारण इनके महत्व को समझा जा सकता है.

 

लेकिन पिछले 9 सालों में दिल्ली के एम्स की टक्कर का पूरे देश मे एक अस्पताल भी नही खोल पाई है मोदी सरकार….

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