हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने 2019 लोकसभा चुनाव के वक्त आज तक को एक इंटरव्यू दिया था जिसने उन्होंने कहा कि मैने पैंतीस साल भीख मांगकर खाया है
2023 में प्रधानमन्त्री फ्रांस दौरे पर जाते है और वहां बताते हैं कि मेरा जुड़ाव फ्रांस से कोई नया नहीं है, ये कई दशक पुराना है। उन्होेंने वहा 40 साल पहले भारत में फ्रांस के सांस्कृतिक केंद्र अलायंस फ्रांसेज (Alliance Francaise) की सदस्यता लेने के बारे दावा किया और कहा कि वह पहले व्यक्ति थे जो इनके सदस्य बने थे इसके साथ ही एक मेंबरशिप कार्ड की फोटो भी वायरल हुई है जिससे पता लगता है कि उन्होंने 1981 में मेम्बरशिप के लिए 125 रु जैसी बड़ी रकम चुकाई थी
दरअसल एलायंस फ़्रैन्काइज़ एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो दुनिया भर में फ्रेंच भाषा, कला और संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है,
ध्यान दीजिएगा कि जब हम 1981 की बात करते हैं तो हम शीत युद्ध के जमाने की बात कर रहे हैं और शीत युद्ध में इस तरह के अमेरिका रूस और अन्य यूरोपीय देशों के सांस्कृतिक संगठनों का एक इतिहास रहा है जिनका एक सिरा कही न कही जाकर सीआईए या केजीबी से जरूर जुड़ता था
मोदी के ऐसे संगठन से जुड़ाव पर आश्चर्य होता है क्योंकि उन्होंने अपने बारे में बताया है 80 के दशक में वे आरएसएस के अहमदाबाद स्थित कार्यालय हेडगेवार भवन में रहते थे और सुबह चार बजे उठ कर भवन में आने वाले आरएसएस कार्यकर्ताओं को चाय पिलाया करते थे उन्होंने उस दौरान की अपनी गरीबी की चर्चा बार बार की है और अब पता लगा है कि वो उस वक्त की प्रतिष्ठित और जानी मानी संस्था एलायंस फ़्रैन्काइज़ में ईयरली मेंबर शिप के 125 रु प्रतिवर्ष चुका रहे थे
लेकिन उनके ऐसे किसी विदेशी सांस्कृतिक संगठन से जुड़ाव की कहानी यहीं खत्म नहीं होती
हम सब जानते है की 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान मोदी उनके साथ देश भर में घूमे थे लेकिन उसके बाद भी उन्हें उस वक्त बीजेपी की सेकण्ड या थर्ड लीडरशिप में शुमार नहीं किया जाता था जबकि बीजेपी के बाकि अन्य नाम तेजी से जनता के बीच लोकप्रिय होने लगे थे लेकिन 1994 से कहानी बदलना शुरू होती है
1994 में मोदी को एक इनविटेशन प्राप्त होता है ये इनविटेशन सीधे अमेरिका से आता है उन्हें अमेरिका की यात्रा के लिए बुलाया जाता है और ये आमंत्रण भेजा जाता है अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स (ACYPL) की तरफ से उनकी इस यात्रा में बीजेपी के अनंत कुमार और जी किशन रेड्डी भी शामिल हुए थे अनंत कुमार को 2014 में मोदी सरकार में उर्वरक मंत्री बनाया गया था, किशन रेड्डी को भी बाद में बड़े पद मिले
जी किशन रेड्डी ने 2014 में मोदी से अपनी नजदीकियां दिखाने के लिए अपनें ट्विटर अकाउंट से मोदी की अमेरिका यात्रा की बहुत सारी तस्वीरें प्रकाशित की और मोदी की पहली अमेरिका यात्रा के बारे में दुनिया को पता चला
अमेरिका की यह संस्था अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स (ACYPL) एक महत्त्वपूर्ण संस्था है
ACYPL की वेब साइट पर जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार 1966 से ही यह संस्था दुनिया के अलग अलग देशो के उभरते हुए युवा नेताओ को अमेरिका में बुलाती आई है इनकी वेबसाइट पर एलुमनी के रूप में नरेंद्र मोदी का भी फोटो लगा हुआ है
दरअसल ACYPL कार्यक्रम का उद्देश्य अमेरिकी विदेश विभाग के विदेश नीति उद्देश्यों को बढ़ावा देना है
इस संस्था के बारे में यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने 2002 में एक अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट में बताया है कि
1966 में हमारी स्थापना के बाद से, अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स ने हमारे अंतरराष्ट्रीय विनिमय कार्यक्रमों के माध्यम से निर्वाचित अधिकारियों और नीति विशेषज्ञों को वैश्विक परिप्रेक्ष्य दिया है। हम दुनिया भर के नेताओं की अगली पीढ़ी के बीच आपसी समझ, सम्मान और मित्रता को बढ़ावा देने के लिए महासागरों, सीमाओं और राजनीतिक स्पेक्ट्रम के पार लोगों को एक साथ लाने में विश्वास करते हैं।
वे आगे लिखते है
विदेश में लोगों को प्रतिनिधियों को विभिन्न राजनीतिक प्रणालियाँ दिखाकर उन्हें अवसर प्रदान करनाअंतरराष्ट्रीय साथियों के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाएं और उनकी समझ बढ़ाए
साफ़ समझ मे आता है कि यह किस तरह की संस्था है
ACYPL की वेब साइट पर 1994 में भारत से अमेरिका पुहंचे भारतीय प्रतिनिधि मंडल की एक ग्रुप फ़ोटो है इस तस्वीर में मोदी तो मौजूद नहीं है लेकिन भारत से आया ग्रुप US इलेक्शन स्टडी प्रोग्राम 1994 का बैनर लिए हुए है …… हम जानते ही कि भारत मे तब तक चुनावों में ईवीएम
मशीनों के इस्तेमाल को चुनाव आयोग की हरी झंडी मिल चुकी थी
1988 में संसद ने पहली बार Representation of the People Act 1951 में संशोधन किया गया और EVM के इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी गई.
पहली बार 2001 में तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर EVM का प्रयोग हुआ और फिर 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार पूरे देश ने ईवीएम के ज़रिए अपना वोट दिया था.
2004 से लेकर अब तक, हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वोटिंग EVM के ज़रिये ही हुई है
फिलहाल हम बात कर रहें हैं ACYPL की, इसकी वेबसाइट पर एलुमनी के रूप में अमेरिका में इस संगठन की संबद्धता एक बडे़ संगठन अटलांटिक काउंसिल से बताई जाती है
फोर्ड फाउंडेशन ने 250,000 डॉलर के पांच साल के अनुदान के साथ अटलांटिक काउंसिल को लॉन्च करने में मदद की। फोर्ड फाउंडेशन ने ही 1969 से 1973 तक $800,000 से अधिक का योगदान दिया।
अटलांटिक काउंसिल को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की विदेश नीति लागू करने वाली शाखा भी माना जाता है
अटलांटिक काउंसिल को अमेरिकी सेना, अमेरिकी सरकार, बड़ी तकनीकी फर्मों, हथियार निर्माताओं और यहां तक कि मध्य पूर्वी देशों से धन मिलता है। अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक के निदेशक मंडल में हेनरी किसिंजर, कॉलिन पॉवेल, कोंडोलेज़ा राइस, 7 पूर्व सीआईए निदेशक और वरिष्ठ सैन्य कमांडर जैसे हाई-प्रोफाइल राजनेता रह चुके हैं।
विश्व स्तर पर सार्वजनिक नीति पर सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव वाले थिंक टैंक” में अटलांटिक काउंसिल का बड़ा नाम है
1998 में, अमेरिकी इतिहासकार मेल्विन स्मॉल ने अटलांटिक काउंसिल के प्रारंभिक वर्षों पर नाटो के लिए एक रिपोर्ट तैयार की,
इस रिपोर्ट की शुरुआत मे लिखा है ….
8 अप्रैल, 1976 को, न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट दी कि अटलांटिक काउंसिल के अंशकालिक सलाहकार, जेम्स एफ. सैटलर को पूर्वी जर्मन सरकार के राज्य सुरक्षा तंत्र के एक गुप्त एजेंट के रूप में उजागर किया गया , उनके जासूसी कार्य को इतना अधिक सम्मान मिला था कि जर्मन कम्युनिस्टों ने उन्हें अपनी खुफिया सेवाओं में सबसे कम उम्र का पूर्ण कर्नल बना दिया था। अटलांटिक काउंसिल, जिसने 1961 में अपनी स्थापना के बाद से पुस्तकों और पैम्फलेटों के प्रकाशन और सम्मेलनों के प्रायोजन के माध्यम से नाटो और यूरोपीय-अमेरिकी सहयोग को बढ़ावा दिया था, अटलांटिक काउंसिल एक निजी संगठन था जिसकी गतिविधियों में कभी भी क्लासिफाइड सामग्री शामिल नहीं थी।”
पूरी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं मेल्विन स्मॉल की रिर्पोट बताती हैं कि ACYPL दरअसल अटलांटिक काउंसिल का ही ब्रेन चाइल्ड था और शुरुआत में ACYPL और अटालंटिक काउंसिल दोनो का ऑफिस और डाक पता एक ही था
आसानी से समझा जा सकता है कि अमेरिकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स (ACYPL) का मुख्य उद्देश्य क्या थे , 2022 में मोदी और हेनरी किसिंजर की मुलाक़ात के फोटो काफी वायरल हुए बहुत से लोगो ने इस बात पर आष्चर्य जताया कि कट्टर भारत-विरोधी हेनरी किसिंजर के साथ मोदी क्या कह रहे थे
कमाल की बात यह भी है पीएम मोदी ने प्रधान मंत्री बनने के बाद अमेरिकी हितों के अनुरूप ही डिजीटल इण्डिया की शुरुआत की, उनकी महती योजनाओं जैसे जन-धन, स्वच्छ भारत, नोटबंदी आदि की जड़े अमरीकी हितों के परिपेक्ष्य में आसानी से जांची जा सकती है, ओबामा केयर की तर्ज पर ही आयुष्मान भारत शुरू की गयी
डिस्क्लेमर : यह लेख समझ बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है इसका अन्यथा मतलब न निकाला जाए