मोदी जी ने बैंको का 15 लाख करोड़ पूंजीपतियों पर लुटा कर भारत का सबसे बड़ा घोटाला किया है, घेरिए मोदी जी को संसद मे, 

आर्टिकल शेयर कीजिए
क्या आप जानते हैं कि मोदी सरकार ने अपने 9 साल के कार्यकाल में यूपीए सरकार के 10 साल की तुलना में दस गुना रकम राईट आफ कर दी हैं  ! इतनी बड़ी रकम को राइट ऑफ कर देना भारत का सबसे बड़ा घोटाला है
पिछली बार 2018 में जब अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा हो रही थी तब नरेंद्र मोदी अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बहुत मुखर थे उन्होंने था  कहा कि हमारे सत्ता में आने से पहले देश के बैंकों में अंडरग्राउंड लूट चल रही थी। उन्होंने इसे लेकर कई आरोप भी विपक्षी दल कांग्रेस पर लगाए थे
इस बार कांग्रेस के पास पूरा मौका है क्योंकि मोदी सरकार ने पिछले 9 साल में अपने पूंजीपति मित्रो के लगभग 15 लाख करोड़ रूपये राइट ऑफ़ कर दिए है जबकि मनमोहन सरकार के पूरे 10 सालो में मात्र 2 लाख 20 हजार करोड़ ही राइट ऑफ़ किया गया था
मोदी सरकार ने 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2021 तक बैंकों के 11 लाख 19,482 करोड़ रुपये राइट ऑफ किये थे उसके बाद 2021-22 में 1,74,966 करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ किया गया और कल जो आंकड़ा सामने आया है उसके अनुसार 2022-23 में बैंकों ने कुल 2.09 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया है
यानी मोटे तौर पर देखा तो मोदी सरकार के कार्यकाल में 15 लाख करोड़ रुपया बैंकों की बुक से गायब कर दिया गया
राइट ऑफ क्या होता है
कुछ मित्रों का कहना है कि यह लोन माफ नहीं किया गया है बल्कि इसे राइट ऑफ किया गया है आइये एक बार इन तकनीकी शब्दो की जादूगरी को समझ लेते हैं दरअसल किसी भी कर्ज में जब लगातार तीन महीने तक किश्त नहीं चुकायी जाती है तो वो फंसा कर्ज यानी एनपीए में तब्दील हो जाता है. जब एनपीए की वसूली की कोई उम्मीद नहीं होती है तो वो डूबा कर्ज बन जाता है, वो रकम बट्टे खाते में डाल दी जाती है. तकनीकी भाषा में इसे ‘राइट ऑफ’ कहा जाता है.
आरबीआई के मुताबिक लोन को राइट ऑफ करने के लिए बैंक एक प्रोविजन तैयार करते हैं। इस प्रोविजन में राशि डाली जाती है। इसी का सहारा लेकर लोन को राइट ऑफ किया जाता है। बाद में यदि कर्ज की वसूली हो जाती है तो वसूली की गई राशि को इस कर्ज के विरुद्ध एडजस्ट कर दिया जाता है। ‘राइट ऑफ एक टेक्निकल एंट्री है, इसमें बैंक को कोई नुकसान नहीं होता है, इसका मतलब ये नहीं है कि बैंक ने उन संपत्तियों को छोड़ दिया, राइट ऑफ के बाद भी बैंक कर्ज वसूली की प्रक्रिया जारी रखते हैं।
लेकिन बड़ा सवाल यहाँ ये उठता है कि राइट ऑफ किये गए लोन की वसूली आखिर होती कितनी है ?
मोटे तौर पर देखा जाए 100 रु यदि राईट आफ हुऐ हैं तो मात्र 15 रूपए ही उसमे से रिकवर हो पाए हैं
यानी राईट आफ की 85 प्रतिशत रकम डूब गईं हैं
अब ये रकम कही न कही तो गईं ही होगी किसी न किसी उद्योगपति को ये रकम प्राप्त हुई होगी लेकिन यदि आप पूछेंगे कि ये कौन से उद्योगपति है जो इतनी अधिक रकम डुबा रहे हैं तो कोई जवाब नही दिया जाएगा !
आखिर एनपीए को राइट ऑफ करने में उद्योगपति को क्या फायदा मिलता हैं ?
……….
दरअसल बैंक से जुड़े सूत्र बताते हैं कि जब लाइव लेजर में जब एनपीए अकाउंट होता है.. तो उसमें मैं ब्याज के पूरे मूल धन की रिकवरी होती है… आरबीआई के डायरेक्टिव के हिसाब से लाइव लेजर के एनपीए पर कोई स्कीम नहीं लाई जा सकती, कारपोरेट द्वारा अपनी बंधक संपत्ति को छुड़ाने का एक ही तरीका होता है कि लोन राइट ऑफ कर दो उसके बाद स्कीम लाकर लोन का खाता बंद कर दो
जब लोन राइट ऑफ होता है तो लाइव लेजर से हट जाता है फिर भी रिकवरी की सारी प्रक्रियाएं बैंक के लिए खुली होती हैं…ओर रिकवरी के नाम पर खेल कर लिए जाते है, यानी बंधक संपत्ति न बेचकर ऋणी से समझौता करने की स्थिति में… मूलधन का भी बड़ा भाग माफ़ कर दिया जाता है ब्याज पूरा छोड़ दिया जाता है कानूनी प्रक्रियाओं में जो धन बैंक ने ने खर्च किए वह भी छोड़ दिया जाता हैं…
यानी राइट ऑफ के बाद स्कीम लाई जाती है उसमे कहा जाता है कि तुम्हारा पूरा ब्याज माफ और जितना मूलधन है उसके आधे से कम भी अगर दे दो तो लोन माफ..
जबकि अगर बैंक बंधक संपत्ति की नीलामी करें तो पूरा मूलधन मय ब्याज के कानूनी खर्चों सहित राइट ऑफ के पहले ही जमा हो सकता है और राइट ऑफ के बाद भी…लेकिन इस ओर ध्यान नही दिया जाता यही सबसे बड़ा घोटाला है
और मोदी सरकार हर साल ये घोटाला कर रही है यह देश का सबसे बड़ा घोटाला है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *