शेयर बाजार के रेग्यूलेटर सेबी की जांच में अडानी समूह की लिस्टेड कंपनियों की तरफ से डिस्क्लोजर यानि जरुरी खुलासे और ऑफशोर फंड्स के होल्डिंग्स के मामले में नियमों के उल्लंघन का मामला सामने आया है
गौतम अडानी की अगुआई वाले अडानी ग्रुप पर अमेरिकी शॉर्ट-सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च (Hindenburg Research) ने इस साल जनवरी में अपनी एक रिपोर्ट में कॉरपोरेट गवर्नेंस से जुड़े कई सवाल उठाए थे. इसके बाद SEBI ने जांच शुरू की थी. SEBI की यह जांच सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में हो रही है और मंगलवार 29 अगस्त को इस मामले में कोर्ट सुनवाई करेगा
हिंडनबर्ग रिसर्च ने जो मुख्य रूप से आरोप लगाया था वो सेबी की जांच में सही पाया गया गया है ऐसा रायटर्स की रिपोर्ट में बताया गया है हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया था कि ज्यादातर मॉरीशस स्थित शेल कंपनियों के जटिल नेटवर्क का इस्तेमाल अडानी की सात सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर की कीमतों में हेरफेर करने या उनकी बैलेंस शीट को मजबूत बनाने के लिए भारत में धन भेजने के लिए किया गया था। .
रॉयटर्स के हवाले से प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि ये उल्लंघन “तकनीकी” प्रकार के हैं. इनके उल्लंघन पर जांच पूरी होने के बाद आर्थिक दंड से अधिक कोई कार्रवाई नहीं होगी. रिपोर्ट में एक दूसरे सूत्र ने बताया कि SEBI की अभी अपनी जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की कोई योजना नहीं है.
यूके के फाइनेंशियल टाइम्स ने जनवरी में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 5 वर्षों में अडानी समूह के 5.7 बिलियन डॉलर का लगभग आधा एफडीआई अपारदर्शी विदेशी संस्थाओं से आया है।”भारत के एफडीआई प्रेषण आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अडानी से जुड़ी अपतटीय कंपनियों ने 2017 और 2022 के बीच समूह में कम से कम 2.6 बिलियन डॉलर का निवेश किया, जो इस अवधि में कुल एफडीआई में प्राप्त 5.7 बिलियन डॉलर से अधिक का 45.4 प्रतिशत है।”
यह डेटा बताता है कि कैसे अस्पष्ट सोर्सेज के फंड से अडानी को अपना विशाल साम्राज्य बनाने में मदद मिली।
ग्रुप में एफडीआई डालने वाली अधिकांश ऑफशोर शेल कंपनियां खुद को अडानी के प्रमोटर ग्रुप का हिस्सा बताती है। इसका मतलब है कि वे कंपनियां अडानी या उनके परिवार से जुड़ी हुई हैं। सबसे बड़ा निवेश अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लिंक्ड दो कंपनियों से आया है।
सबसे बड़ा निवेश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दो कंपनियों से आया, जो अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अदानी के बड़े भाई विनोद अदानी से जुड़ी हैं, जो स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग में साइप्रट नागरिक के रूप में सूचीबद्ध हैं और दुबई में रहते हैं।
अस्पष्ट मॉरीशस की संस्थाओं से धन का स्थानांतरण चिंता का विषय था क्योंकि यह पता लगाना असंभव था कि धन “राउंड-ट्रिप” किया गया था या नहीं जबकि भारत के विदेशी निवेश नियम राउंड-ट्रिपिंग व्यवस्था पर रोक लगाते हैं।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि ‘हमारे शोध, जिसमें संपूर्ण मॉरीशस कॉर्पोरेट रजिस्ट्री को डाउनलोड करना और सूचीबद्ध करना शामिल है, ने खुलासा किया है कि विनोद अडानी, कई करीबी सहयोगियों के माध्यम से, अपतटीय शेल संस्थाओं की एक विशाल भूलभुलैया का प्रबंधन करते हैं।हमने विनोद अडानी या करीबी सहयोगियों द्वारा नियंत्रित 38 मॉरीशस शेल संस्थाओं की पहचान की है। हमने ऐसी संस्थाओं की पहचान की है जो साइप्रस, यूएई, सिंगापुर और कई कैरिबियाई द्वीपों में विनोद अडानी द्वारा गुप्त रूप से नियंत्रित हैं।
विनोद अडानी से जुड़ी कई संस्थाओं के संचालन के कोई स्पष्ट संकेत नहीं हैं, जिनमें कोई कर्मचारी रिपोर्ट नहीं किया गया है, कोई स्वतंत्र पता या फोन नंबर नहीं है और कोई सार्थक ऑनलाइन उपस्थिति नहीं है। इसके बावजूद, उन्होंने सामूहिक रूप से अरबों डॉलर भारतीय अडानी में सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध और निजी संस्थाओं में स्थानांतरित किए हैं,
सेबी ने जो रिपोर्ट पेश की है वो रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन के खुलासे के उल्लंघन से जुडी हुई है. सूत्र ने बताया,”रिलेटेड पार्टी के साथ लेनदेन की पहचान की जानी चाहिए और सूचना दी जानी चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो यह भारतीय सूचीबद्ध कंपनी की वित्तीय स्थिति की गलत तस्वीर पेश कर सकता है.”
SEBI ने कोर्ट में जमा डॉक्यूमेंट्स में कहा कि उसने रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन के 13 मामलों की जांच की है. सूत्रों ने बताया कि प्रत्येक कंपनी की ओर से प्रत्येक उल्लंघन पर अधिकतम जुर्माना 1 करोड़ रुपये (1,21,000 डॉलर) तक हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में यह भी पाया गया कि कुछ अडानी कंपनियों में ऑफशोर फंड की हिस्सेदारी नियमों के मुताबिक नहीं थी. भारतीय कानून किसी ऑफशोर निवेशक को FPI रूट के जरिए अधिकतम 10 फीसदी निवेश की इजाजत देता है. इससे बड़े निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप मे वर्गीकृत किया जाता है. सूत्रों का कहना है कि कुछ ऑफशोर इनवेस्टर ने अनजाने में इस सीमा का उल्लंघन किया है.
अगर आज कोर्ट मे यहीं रिपोर्ट पेश होती हैं तो साफ़ है कि हिंडनबर्ग सही था और अडानी गलत
महत्वपूर्ण यह है कि वर्तमान सरकार इसको मानेगी या नहीं