सुप्रीम कोर्ट का ये निर्णय भारत में सर्विलांस राज़ की शुरूआत है

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले मे एक ऐसी नजीर पेश की है जिससे निजता के अधिकार पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव केस में 28 जुलाई को दो आरोपियों वेरनन गोंजाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दी। लेकिन जमानत की शर्तो में उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था की जिससे आने वाले समय में जमानत देने की शर्तो में एक बड़ा परिवर्तन आ सकता है

बॉम्बे हाईकोर्ट के जमानत देने से इनकार करने के आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने निर्देश दिया कि गोंजाल्विस तथा फरेरा महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएंगे. कि उन्हें विशेष एनआईए कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों पर जमानत पर रिहा किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि एक शर्त यह होनी चाहिए कि मुकदमा खत्म होने तक वे महाराष्ट्र राज्य नहीं छोड़ेंगे। साथ ही, उन्हें अपना पासपोर्ट भी सरेंडर करना होगा और एनआईए को अपना पता और मोबाइल फोन नंबर भी बताना होगा।

इस अवधि के दौरान उनके पास केवल एक मोबाइल कनेक्शन हो सकता है। उनके मोबाइल फोन को चौबीसों घंटे चार्ज किया जाना चाहिए और लोकेशन को चालू रखा जाना चाहिए और लाइव-ट्रैकिंग के लिए एनआईए अधिकारी के साथ साझा किया जाना चाहिए। वे सप्ताह में एक बार जांच अधिकारी को भी रिपोर्ट करेंगे।

पहली बार ऐसा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए ये शर्त लगाई है कि आरोपी मोबाइल फोन कभी स्विच्ड ऑफ नहीं होगा। वे अपनी लोकेशन भी हमेशा ऑन रखेंगे। और सबसे बड़ी बात आरोपियों का फोन इस केस के इन्वेस्टिगेशन ऑफीसर से पेयर रहेगा।

जबकि 24 जुलाई को जब दिल्ली हाईकोर्ट ने एक आरोपी को जमानत देते वक्त यहीं व्यवस्था की गई थी तब सुप्रीम कोर्ट का रूख बिलकुल अलग था

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसने कई करोड़ रुपये के बैंक ऋण धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में शक्ति भोग फूड्स लिमिटेड (एसबीएफएल) के इंटरनल ऑडिटर को जमानत दे दी थी। लगाई गई जमानत शर्त का खंड (डी) में व्यवस्था दी गईं थीं कि आवेदक को अपने मोबाइल फोन से संबंधित आईओ को Google पिन स्थान बताना होगा जो उसकी जमानत के दौरान ऑन रखा जाएगा।

उस केस में जस्टिस अभय एस ओक ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि आरोपी को जांच अधिकारी के साथ अपनी गूगल लोकेशन शेयर करने की शर्त लगाना निगरानी के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

यानी एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट हाइकोर्ट के जमानत के फैसले मे फोन लोकेशन से निगरानी को संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन मान रहा है वही दूसरी ओर एक केस में खुद वही काम कर रहा है

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सर्विलांस राज़ की शुरुआत है सर्विलांस के जरिए किसी मोबाइल फोन या किसी अन्य डिवाइस की सहयाता से व्यक्ति की भौगोलिक स्थिति का पता या उसकी स्थिति की जानकारी, मोबाइल टॉवर या उपग्रह के जरिए पता की जाती है।

सुप्रीम कोर्ट अभी लोकेशन पता करने के मोबाईल ऑन रखने बाध्यता की शर्त लगा रहा है कल को बह ऐसा डिवाइस पहनने के लिए बाध्य कर सकता है जिसमे जीपीएस ट्रैकिंग की सुविधा हो

भारत के बहुत से शहरो मे नगर निगम में सफाईकर्मियों और फील्ड में काम करने वाले अफसरों की कलाई पर जीपीएस वाली घड़ी बांधी जा रही है

ब्रिटेन में अपराधियों को GPS टैग पहनाया जा रहा है एक वर्ष या उससे अधिक की सजा पाने वालों में GPS फिट किया जाएगा.

ब्रिटिश सरकार का कहना है कि इस पहल से पुलिस को शातिर अपराधियों पर 24/7 नजर रखने में मदद मिलेगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चोरी और सेंधमारी के दोषियों में से आधे से अधिक एक वर्ष के भीतर दोबारा वारदातों को अंजाम देते हैं और 80 फीसदी मामलों में किसी संदिग्ध की पहचान नहीं हो पाती. नए नियम से पुलिस को ऐसे लोगों को पकड़ने में सहायता मिलेगी

पुलिस जेल और प्रोबेशन सर्विस के कर्मचारियों के साथ काम करेगी. ताकि यह पता लगाया जा सके कि GPS टैग वाला अपराधी उस क्षेत्र में मौजूद था या नहीं, जहां चोरी, लूट, डकैती या हत्या जैसी वारदात को अंजाम दिया गया.

हो सकता है ये बात आपको पसंद आ रही हो लेकिन इस तरह का सर्विलांस राज निजता का उलंघन कर सकता है और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा सकता है। एक मजबूत कानूनी ढांचे, निगरानी व्यवस्था, सुरक्षा प्रबंधों और पारदर्शिता के बगैर जब सर्विलांस का प्रयोग किया जाता है तब इसका नुकसान सिर्फ उसी व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता जिसको टारगेट किया गया है।

कुल मिलाकर यह लोकतंत्र का ही मखौल बनाता है। जॉर्ज ऑरवेल ने 1984 तक एक संपूण सर्विलांस राज्य की परिकल्पना पेश की थी, जिसे ‘1984’ नाम की पुस्तक में उन्होंने चित्रित किया है। यह एक ऐसे राज्य के बारे में बताता है जो एक बड़े भाई जैसा आप पर हर समय निगरानी रखता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से भारत में अब कुछ ऐसी व्यवस्था लागू की जा रही है

2 Comments

  1. आपकी बात सही है किससे सर्वेलांस राज की शुरुआत हो गई वह तो हमारे हाथ में एंड्रॉयड फोन आते ही हो गई है कई फ्री एप्स के जरिए किसी की भी लोकेशन कैमरा माइक एक्सेस किया जा सकता है अब हम टेक्नोलॉजी के गुलाम हो चुके हैं इसलिए इससे बच नहीं सकते इसमें अच्छी बात यह है की अपराधियों पर नजर रखने और सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए यह बहुत ही कारगर साबित होगी सिस्टम तो दुरुपयोग करता ही है मगर फिर भी अच्छा काम करने वालों के लिए किसी ब्रह्मास्त्र से कम नहीं

  2. बहुत खतरनाक है यह सब।

    भविष्य में किसी को कोई निजता नहीं रहेगी।

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