अपनी जमीन की खातिर याद आई आदिवासियों की जमीन

आर्टिकल शेयर कीजिए

कीर्ति राणा की कलम से
टंट्या मामा की माला जपने वाली सरकार को याद आ गई कि आदिवासियों की जमीन बेचने के मामले में कलेक्टरों पर कार्रवाई की जानी चाहिए तो लोकायुक्त को एक्शन की झंडी दिखा दी।इस मामले में शिकायत तो 2015 में ही कर दी गई थी, जांच होने में ही 8 साल लग गए। अभी तो जबलपुर और कटनी जिलों में ही जमीन बिक्री के मामले सामने आए हैं।ऐसा नहीं कि एक्शन फटाफट लिया गया है।आठ सालों (2006 से 2013में) इस गोलमाल में सहयोगी रहे ये कलेक्टर तब इन जिलों में एडीएम थे, इन पर कार्रवाई का मन चुनाव से पहले तब बना है जब तीन आईएएस कलेक्टर हो गए और एक रिटायर-इन सभी की जांच रिपोर्ट वाली फाइलें कार्रवाई के निर्देश के लिए करीब 8 साल से धूल खा रही थीं।गौरतलब है 2006 से 2013 हुए जमीन बिक्री घोटाले में भी यही सरकार थी।प्रारंभिक जांच में ये सौदा 500 करोड़ रुपये के आसपास का होना बताया जा रहा है।आदिवासियों की जमीन बिक्री मामले में ये अधिकारी इसलिए फंसे हैं कि तब ये एडीएम थे और निर्णय लेने का अधिकार कलेक्टर का रहता है। हद तो यह हुई कि अधिकारियों ने उन जमीनों को भी बेचने की अनुमति दे दी, जो शासन ने आदिवासियों को जीवन यापन के लिए पट्टे पर दी थी।दो दशक में कलेक्टरों की अनुमति से आदिवासियों की 2100 एकड़ से अधिक जमीन अन्य वर्ग को बेच दी गई।
अभी जबलपुर और कटनी जिलों के ही मामले उजागर हुए हैं।कटनी में तो पूर्व आइएएस अंजू सिंह बघेल ने अपने बेटे के नाम पर रजिस्ट्री करवा दी थी आदिवासियों की जमीन।कटनी जिले में 15 कलेक्टर रहे इनमें से 10 ने अपने कार्यकाल के दौरान 77 आदिवासियों की जमीन बिकवाने में सहयोग किया
कटनी जिले में जमीन का यह पूरा खेल रसूखदारों के दम पर खेला गया, जिसकी आड़ तत्कालीन कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारी बने। इन्होंने आदिवासियों की जरूरत के हिसाब से कम बल्कि रसूखदारों की पहुंच पर अधिक अनुमतियां जारी कीं।कटनी जिले में 281 आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी को बेचने की अनुमति तत्कालीन कलेक्टरों ने दी। इससे 860 हेक्टेयर यानी 2127 एकड़ जमीन दांव पर लग गई। इन जमीनों को बेचने वाले आदिवासी परिवार कहां और किस हाल में हैं, किसी को कुछ नहीं पता। प्रशासन भी इनके बारे में नहीं बता पा रहा है।
जबलपुर जिले में आदिवासियों की जमीन को सामान्य वर्ग को बेचने के मामले में लोकायुक्त ने जिन आइएएस अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। 2007 से 2012 के बीच क्रमश: एसडीएम दीपक सिंह वर्तमान में संभागायुक्त ग्वालियर चंबल संभाग, ओमप्रकाश श्रीवास्तव वर्तमान में आबकारी आयुक्त ग्वालियर, बसंत कुर्रे वर्तमान में उप सचिव मंत्रालय,और एमपी पटेल वर्तमान में सेवानिवृत्त पदस्थ थे। इन्होंने बिना जांच पड़ताल और नियमों का पालन किए बगैर ही अनुमति जारी की। इस तरह के फिलहाल 13 मामलों की जांच लोकायुक्त कर रही है। इन सभी अनुमति से जुड़े दस्तावेजों की फाइलें भी कलेक्ट्रेट से लोकायुक्त ने जब्त कर ली है। जबलपुर में एडीएम पदस्थ थे। इन्होंने आदिवासियों की जमीनों को बेचने के लिए अनुमति दी जबकि भू राजस्व की धारा 165 ‘6’ में सिर्फ कलेक्टर को इस तरह की अनुमति देने का अधिकार है। ऐसे में जिला कलेक्टर ने भी विभागीय स्तर पर यह प्रभार एडीएम को दे रखा था। एक तरह से उस वक्त रहे कलेक्टर ने नियम के अनुरूप प्रक्रिया नहीं की।
2015 में इस संबंध में लोकायुक्त भोपाल में शिकायत हुई थी, जिसमें शिकायतकर्ता ने प्रमाणों के साथ आइएएस अफसरों के भ्रष्टाचार की पोल खोली थी। लोकायुक्त ने इस मामले में लोकायुक्त जबलपुर जबलपुर संभाग स्तरीय सतर्कता समिति को जांच दी। उस दौरान जांच शुरू हुई। जांच रिपोर्ट भोपाल भेजी गई। समिति ने 13 फरवरी 2023 को जांच रिपोर्ट लोकायुक्त को सौंपी, जिसमें इस पूरे मामले को एक सुनियोजित षड्यंत्र और सामूहिक भ्रष्टाचार बताया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *